tenaliram ki kahani
तेनालीराम कीकहानी


तेनालीराम और विद्वान् पंडित की कहानी | Tenaliram aur Vidvan Pnadit ki kahani -

 

एक बार की बात है विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्ण देव राय के दरबार में राममूर्ति नामक दक्षिण के एक बहुत बड़े विद्वान ब्राह्मण आए। उन्होंने राजा कृष्णदेव राय से कहा- " महाराज ! सुना है कि आपके दरबार में बहुत बड़े-बड़े विद्वान है। मैं उन्हें विद्वान तभी मानूंगा जब उनमें से कोई यह बता सके कि मेरी मातृभाषा कौन सी है। "

फिर राममूर्ति ने एक-एक कर तमिल, तेलगु, कन्नड़, मलयालम भाषा में धारा प्रवाह बोलना चालू किया। उनकी भाषा सुनकर ऐसा लग रहा था मानो वह जिस भी भाषा में बोलते थे यही उनकी मातृभाषा है । उनके बोलने के तरीके से उनकी मातृभाषा का पता लगाना बहुत मुश्किल था।

 राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम की ओर देखते हुए कहा - " तेनालीराम ! क्या अपने दरबार में ऐसा कोई विद्वान है जो इनकी मातृभाषा बतला सके। "

तेनालीराम भी समझ गए के राममूर्ति की सभी भाषाओं पर बहुत अच्छी पकड़ है । तेनालीराम ने महाराज कृष्ण देव राय से कहा - " महाराज ! इनके जैसे महान विद्वान अगर हमारे यहाँ कुछ दिन मेहमान बनकर रुकें और हमें अपनी सेवा का अवसर दें तो यह लिए बहुत ही गर्व की बात है

महाराज कृष्णदेव राय भी तेनालीराम के इशारों को समझ गए और उन्होंने भी विद्वान से कुछ दिन महल में रोकने का अनुरोध किया। राममूर्ति तीन दिन महल में रुकने के लिए तैयार हो गए। दूसरे दिन जब राममूर्ति नित्य कर्म के लिए जा रहे थे तो तेनालीराम भी उनके साथ चलने लगे। रास्ते में एक कांटा राममूर्ति के पैर में चुभ गया और राममूर्ति ने " अम्मा-अम्मा " बोलते हुए अपना पैर पकड़ लिया। तेनालीराम ने राममूर्ति के पैर से काँटा निकला जिससे राममूर्ति को आराम लग गया

राममूर्ति तीन दिन महाराज कृष्ण देव राय के मेहमान बन कर रहे और तीसरे दिन जब वह जाने लगे तो उन्होंने महाराज से बोले- " महाराज ! अब मैंने तीन दिन आपका अतिथि स्वीकार किया और अब मैं अपने घर जाना चाहता हूं क्या आपके दरबार में कोई विद्वान है जो मेरी मातृभाषा बतला सके ? "

तभी तेनालीराम खड़े हुए और बोले - " महाराज ! राममूर्ति बहुत बड़े विद्वान हैं और इनकी सभी भाषाओं पर इतनी मजबूत पकड़ है कि यह पता लगाना बहुत कठिन है कि उनकी मातृभाषा कौन सी है किंतु मैं दावे से कह सकता हूँ की इनकी मातृ-भाषा तमिल है । " 

यह सुनकर राममूर्ति बहुत प्रसन्न हुए और  तेनालीराम से पुछा-" तेनालीराम ! तुम्हे कैसे पता चला की मेरी मातृभाषा तमिल है । "

 तेनालीराम बोले - " जब आपके पैर में कांटा चुभा था तब आपके मुख से अम्मा-अम्मा शब्द निकले थे। जब व्यक्ति कठिनाई में होता है तो अपने माता-पिता या परमेश्वर को याद करता है और वह भी उसकी मातृभाषा में। अम्मा शब्द तमिल का शब्द है इसलिए आपकी मातृभाषा तमिल है।"

 तेनालीराम की बुद्धिमत्ता को देखकर राममूर्ति बहुत प्रसन्न हुए और तेनालीराम की बुद्धिमत्ता की प्रशंसा करते हुए चले गए और राजा कृष्णदेवराय ने प्रशन्न होकर तेनालीराम को ढेर सारे उपहार और सम्मान दिया ।