कल्लू पहलवान और तेनालीराम की कहानी | Tenaliram aur Kallu pahalvan ki kahani -
विजयनगर साम्राज्य के पास ही एक राज्य था जिसमें कल्लू नाम का पहलवान रहता था। उसका जैसा नाम था वैसे ही उसके गुण थे । कल्लू पहलवान के हाथ पैर हाथी जैसे मोटे और कद करीब 7 फीट और रंग काला था । अच्छे-अच्छे पहलवान भी कल्लू के नाम से थर-थर कापते थे क्योंकि कल्लू की एक ही पछाड़ अच्छे-अच्छे पहलवानों की पसलियां तोड़ देती थी।
जिस राज्य में कल्लू रहता था उसमें कोई भी ऐसा पहलवान नहीं था जो कल्लू से मल-युद्ध कर सके । धीरे-धीरे कल्लू को अपनी शक्ति का अत्यधिक अभिमान हो गया था । कल्लू ने विजयनगर साम्राज्य के बारे में सुन रखा था वह चाहता था की विजयनगर जाकर वह अपनी ताकत का लोहा मनवाए । कल्लू दंभ भरता हुआ विजयनगर में आया और वहां लोगों को मल युद्ध की चुनौती देने लगा, लेकिन किसी भी नागरिक में इतना साहस नहीं हुआ कि वह कल्लू से मल-युद्ध करें।
कल्लू का साहस इतना बढ़ गया कि वह विजयनगर शहर के किले के मुख्य गेट पर जाकर खड़ा हो गया और लोगों को चुनौती देने लगा । धीरे-धीरे यह बात विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेव राय तक पहुंची। राजा कृष्णदेव राय ने अपने मंत्रियों और सेनापतियों की सभा बुलाई और उनसे कहा की हमारे राज्य में ऐसे पहलवान को ढूंढो जो कल्लू को मल्लयुद्ध में हरा सके । राजा ने मंत्रियों और सेनापतियों को एक दिन का समय दिया ।
दूसरे दिन जब राजा कृष्णदेव राय ने मंत्रियों और सभापतियों से पूछा - " क्या ! हमारे राज्य में कोई ऐसा पहलवान है जो कल्लू को मल युद्ध में हरा सके ?" किन्तु राजा को कोई उत्तर नहीं मिला यह देखकर राजा बहुत निराश हुए और उन्होंने कहा- " अब हमारे पास दो ही रास्ते हैं या तो हम कल्लू को उसके दुस्साहस के लिए दंड दें या कल्लू को भरी सभा में बुलाकर पुरस्कृत करें कि उसके समान दूसरा पहलवान विजयनगर साम्राज्य में नहीं है । किंतु इन दोनों ही स्थितियों में विजयनगर को ही शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी ।"
तभी तेनालीराम भरी सभा में उठकर बोले - " महाराज !मैं कल्लू से मलयुद्ध करूंगा। " यह सुनकर सभा में बैठे सभी मंत्रियों और राजा कृष्णदेव राय को भी हंसी आ गई । राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम से पूछा - " तेनालीराम ! क्या तुमने कल्लू पहलवान को देखा है और क्या तुम उससे मल युद्ध कर सकोगे ?"
तभी तेनालीराम बोले- " महाराज! विजयनगर साम्राज्य की शान रखने के लिए मैं कल्लू पहलवान से मल युद्ध करूंगा चाहे इसमें मेरी जान क्यों ना चली जाए । तेनालीराम की बात सुनकर राजा कृष्णदेव राय बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने तेनालीराम को इसकी अनुमति दे दी ।
दूसरे ही दिन शहर में ढिंढोरा पिटवा दिया गया कि कल्लू पहलवान से तेनालीराम मल युद्ध करेंगे । अगले ही दिन से तेनालीराम शहर के बाहर स्थित भैरव के मंदिर में जाकर तंत्र साधना करने लगे । यह बात कल्लू पहलवान तक पहुंच गई। कल्लू पहलवान ने सोचा कि मैं भी चल कर देखता हूं कि तेनालीराम भैरव मंदिर में किस तरह की तंत्र साधना कर रहा है ।
कल्लू जैसे ही भैरवनाथ मंदिर में जाता है तो देखता है कि तेनालीराम भैरवनाथ की प्रतिमा के सामने बैठकर तंत्र साधना कर रहा है और भैरवनाथ से प्राथना कर रहा होता है कि किसी भी परिस्थितियों में जीत मेरी ही होना चाहिए । तभी भैरव की प्रतिमा से आवाज आती है - " तेनालीराम ! तुम परेशान नहीं होना, मेरी कृपा से तुम इतने शक्तिशाली बन चुके हो कि तुम जिस किसी से भी लड़ाई करोगे तुम्हारी एक ही पटकनी में उसके प्राण निकल जाएंगे ।"
यह देखकर और सुनकर कल्लू पहलवान बहुत ज्यादा डर गया और मल युद्ध के एक दिन पहले ही विजयनगर शहर छोड़कर भाग गया । दूसरे दिन जिस स्थान पर मल्लयुद्ध होना था उस स्थान पर तेनालीराम पहुंच गये किंतु कल्लू पहलवान नहीं आया बहुत देर इंतजार करने के बाद भी कल्लू पहलवान के ना आने पर तेनालीराम को विजेता घोषित कर दिया गया ।
यह देखकर राजा कृष्णदेव राय अत्यधिक प्रसन्न हुए तेनालीराम को एकांत में ले जाकर पूछा -" तेनालीराम ! तुमने यह सब कैसे किया ? "
तेनालीराम मंद मंद मुस्कुराए और बोले- " महाराज ! मैंने तंत्र साधना की झूठी खबर कल्लू पहलवान तक पहुंचा दी थी और जिस दिन वह मंदिर में आया उस दिन भैरवनाथ की मूर्ति के पीछे मैंने अपने एक आदमी को बैठा दिया और मैं उसी से वार्तालाप कर रहा था जिसे सुनकर कल्लू पहलवान को लगा की मैं सचमुच भैरवनाथ से बात कर रहा हूँ और उनकी कृपा से मुझमें असीम ताकत आ गई है और इसी बात से वह डर गया और शहर छोड़ कर भाग गया । "
इस तरह तेनालीराम ने हमेशा की तरह विजयनगर की लाज रखी और राजा कृष्णदेव राय ने हमेशा की तरह तेनालीराम को बहुत सारा धन-धान्य देकर पुरुष्कृत किया |
0 टिप्पणियाँ