पारस पत्थर की कहानी | Paras Pathar ki kahani -
Paras Pathar ki kahani |
बहुत पुरानी बात है एक किसान था उसके पास सैकड़ो एकड़ जमीन थी | किसान बूढ़ा हो चला था उसका एक लड़का था उसका नाम सुरेश था | एक दिन अचानक जमीदार की मृत्यु हो गई | अब सारी जमीन की देखबाल उसके लड़के सुरेश के ऊपर आ गई लेकिन सुरेश को खेती बाड़ी और मेहनत करना अच्छा नहीं लगता था | वह जल्द ही बहुत अमीर बनना चाहता था तभी किसी ने उसे पारस पत्थर के बारे में बतलाया | पारस पत्थर एक ऐसा पत्थर होता है जिसे किसी भी धातु से स्पर्श करने पर वह धातु सोना बन जाती है |
सुरेश किसी भी कीमत पर पारस पत्थर पाना चाहता था | उसने पारस पत्थर ढूंढनें का बहुत प्रयास किया किन्तु उसे पारस पत्थर कहीं नहीं मिला | पारस पत्थर के लिए उसने कई लोगों से संपर्क किया किन्तु वह पारस पत्थर पाने में असफल रहा | आस-पास के ठगों को पता चल गया की सुरेश किसी भी कीमत पर पारस पत्थर पाना चाहता है, ठगों ने पारस पत्थर का लालच देकर सुरेश से लाखो रूपये ठग लिए |
ठगों के बाद सुरेस ठोंगी बाबाओं के जाल में फंस गया | ढोंगी बाबाओं ने भी सुरेश को लालच देकर बुत सा पैसा ऐंठ लिया | पारस पत्थर के लोभ में सुरेश को बहुत नुक्सान हुआ और उसे अपनी कई एकड़ जमीन भी बेंचनी पड़ी | सुरेश की पत्नी हमेशा उसे समझती कि इन सब बातों में मत पड़ो, अपने पास बहुत जमीन है उसी में खेती करों मेंहनत भी किसी पारस पत्थर से कम नहीं है किन्तु सुरेस को तो पारस पत्थर की ही धुन सवार थी |
एक दिन गाँव में बहुत पहुंचे हुए संत आये, सभी ने उन्हें अपनी समस्याएं बतलाई | सुरेस भी अपनी पत्नी के सांथ उनसे मिलने गया और उन्हें अपनी समस्या बतलाई | संत सुरेश की बातें सुनकर मुस्कुराये और बोले मैं जैसा कहूँ वैसा ही करना तो तुम्हे पारस पत्थर अवश्य मिलेगा | संत की बात सुनकर सुरेश बहुत खुश और संत से बोला- " कृपया कर मुझे वह तरीका बतलाएं जिससे मुझे पारस पत्थर मिल जाये |
संत बोले - " तुम्हे केले के पेड़ की पत्तियों के नोक पर जमा सुबह की ओस की बूँदें एक बर्तन में एकत्र करना है और जब तुम पांच लीटर ओस की बूँदें एकत्र कर लोगो तो मैं उसे अभिमंत्रित कर पारस पत्थर में बदल दूंगा | लेकिन याद रहे ओस की बूंदों में तुम पानी मिलाकर धोखा देने का प्रयास करोगे तो तुम्हारी पूरी मेहनत पर पानी फिर जायेगा और ओस की बूंदे पारस पत्थर नहीं बन पाएंगी | "
यह काम बहुत कठिन था | सबसे पहले सुरेश ने अपनी कुछ जमीन पर केले के पेड़ लगाये | केले के पेड़ धीरे-धीरे बढ़ रहे थे किन्तु इतने पेड़ों से वह ओस की सिर्फ कुछ ही बूंदे एकत्र कर पा रहा था उसे लगा इतने केले के पौधों से पांच लीटर ओस एकत्र करने में तो उसे सालो लग जायेंगे | उसने फिर कुछ केले के पौधे और लगाये इस तरह करते करते उसने अपनी लगभग पूरी जमीन पर केले के पेड़ लगा लिए |
सुरेश अब इन केलों के पौधों को पानी देता और उनकी देखभाल करता था | दो साल की अथक मेहनत के बाद सुरेश पांच लीटर ओस के बूंदे एकत्र कर पाया और अत्यधिक प्रसन्न होकर साधू महाराज के पास गया और उन्हें पांच लीटर ओस की बूंदों से भरा बर्तन देते हुए बोला- " साधू महाराज ! आपकी आज्ञा अनुसार मैने दो साल की अथक मेहनत के बाद ये पांच लीटर ओस की बूँदें एकत्र कर ली हैं | कृपया अब इन्हें पारस पत्थर में बदल दीजिये |"
साधू महाराज बोले- " सुरेश तुम्हारी मेहनत सराहनीय है तुम्हेँ तुम्हारी महनत का फल अवश्य मिलेगा | कल जब तुम आओगे तो अपनी पत्नी को भी सांथ लाना |"
सुरेश खुश होकर अपने घर चला गया और पत्नी को सारी बात बतलाई | दूसरे दिन दोनों पति-पत्नी जल्दी उठकर नहा-धोकर साधू के पास पहुंचे | साधू ने सुरेश को देखकर कहा - " सुरेश ! मैंने ओस की बूंदों को पारस पत्थर में बदलने के बहुत प्रयास किया किन्तु मैं उन्हें पारस पत्थर में नहीं बदल सका |"
यह सुनकर सुरेश बहुत उदास हुआ और साधू से बोला - " आपके कहे अनुसार मैंने दो साल अथक मेहनत करके पांच लीटर ओस की बूंदे एकत्र कीं किन्तु मेरी मेहनत बेकार गई | अपने भी दूसरे लोगों की तरह मुझसे झूंठ बोला |"
सुरेश की बात सुनकर साधू बोले -" बेटा ! मेहनत कभी भी बेकार नहीं जाती | तुम्हारी पत्नी के हाँथ में जो पोटरी है उसे खोलो | "
सुरेश ने उसकी पत्नी के हाँथ में रखी पोटरी खोली तो देखकर दंग रह गया उसमें सोने-चाँदी के आभूषण और कीमती रत्न थे | साधू बोले - " सुरेश ! ये तुम्हारी मेहनत का फल है जो किसी पारस पत्थर से कम नहीं है |"
सुरेश ने कहा - " यह मेरी मेहनत का फल कैसे हुआ | "
साधू बोले -" तुमने दो साल से मेहनत करके जो केले के पौधे लगाये थे, दो साल से उनमें फल भी लग रहे हैं किन्तु तुम्हारा पूरा ध्यान पारस पत्थर और ओस की बूंदों पर था और तुमने फलों पर ध्यान ही नहीं दिया किन्तु तुम्हारी पत्नी इन फलों को बाजार भिजवा दिया करती थी और ये सारे आभूषण और रत्न फलों की विक्री से आये पैसों को बेंचकर ख़रीदे हैं | "
सुरेश ने मुस्कुराते हुए उसकी पत्नी की तरफ देखा और बोला - " तुम सहीं थीं जो हमेशा कहती थीं की मेहनत से बड़ा कोई पारस पत्थर नहीं होता|"
सुरेश साधू की तरफ हाँथ जोड़कर बोला - " आपनी मेरी आँखें खोल दीं | अब मैं हमेशा मेहनत करूंगा और पैसा कमाने के लिए कोई शोर्ट-कट नहीं अपनाऊंगा|"
सुरेश अब खूब मेहनत करने लगा और अपनी मेहनत से समाज में खोया रुतवा फिर से प्राप्त कर लिया |
शिक्षा- " मेहनत से कुछ भी पाया जा सकता है | "
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