Saras aur Lomdi ki kahani
लोमड़ी और सारस की कहानी 


लोमड़ी और सारस की कहानी | Lomdi Aur Saras Ki Kahani -

एक समय की बात है एक जंगल में एक लोमड़ी रहती थी । उसी जंगल में एक बड़ा सा तालाब भी था जिसमें सारस रहता था। लोमड़ी अक्सर तालाब में पानी पीने जाती थी  और धीरे-धीरे लोमड़ी और सारस में दोस्ती हो गई। लोमड़ी और सारस अधिकांश समय साथ में बिताने लगे। 

लोमड़ी बहुत चालाक थी और अपनी चतुराई से जंगल के दूसरे जानवरों को मूर्ख बना देती थी। जबकि सारस बहुत सीधा-साधा था और जंगल के दूसरे जानवरों के प्रति उसका व्यवहार बहुत ही अच्छा था। लोमड़ी और सारस में अक्सर हल्का-फुल्का हंसी मजाक होता रहता था ।

एक दिन लोमड़ी के दिमाग में सारस को बेवकूफ बनाने की बात आई । वह सारस के पास गई और बोली मित्र मैं तुम्हें अपने घर भोजन का निमंत्रण देने आई हूं। कल दोपहर तुम मेरे घर भोजन के लिए अवश्य आना। सारस सीधा-साधा था उसने बिना कुछ सोचे समझे हां कह दी और दूसरे दिन समय से लोमड़ी के घर पहुंच गया। 

लोमड़ी ने भी सारस की बहुत आव भगत की और उसे एक अच्छे से आसन पर बैठाया। लोमड़ी बोली मित्र आज मैंने बहुत मेहनत करके बड़ी ही स्वादिष्ट खीर बनाई है । मुझे उम्मीद है  खीर तुम्हें बहुत पसंद आएगी। इतना कहकर लोमड़ी खीर लेकर आ गई और चौड़े बर्तनों में खीर  परोस दी। चौड़े बर्तनों में लोमड़ी तो खीर अच्छी तरह से खा पा रही थी किंतु बर्तन चौड़ा होने के कारण  सारस अपनी चोंच से खीर से नहीं खा पा रहा था। कुछ ही देर में लोमड़ी ने सारी खीर चट कर दी और सारस देखता ही रह गया। 

खीर खाने के बाद लोमड़ी सारस से बोली - " मित्र क्या बात है ? इतनी स्वादिष्ट खीर होने के बाद भी तुमने खीर  नहीं खाई।" 

 सारस लोमड़ी की सारी चाल समझ गया था । सारस बोला - " नहीं-नहीं आज मुझे भूख नहीं है।" इतना कहकर सारस वहां से चला गया । लोमड़ी के घर से जाने के बाद सारस अपने आप को बहुत अपमानित महसूस कर रहा था और किसी भी तरह लोमड़ी से अपना बदला लेना चाहता था।

सारस दिन भर यही सोचता रहा कि किस तरह लोमड़ी से अपना बदला लूं तभी उसे एक उपाय सूझा। वह लोमड़ी के पास गया और बोला - " बहन लोमड़ी!  मैं तुम्हारे यहां दावत खा चुका हूं , अब मेरी बारी है मैं भी तुम्हें अपने यहां भोजन का निमंत्रण देने आया हूं।  तुम्हें कल दोपहर में मेरे घर भोजन के लिए आना होगा। " 



Lomdi aur saras ki kahani
Lomdi aur saras ki kahani 


लोमड़ी ने झट से सारस का आमंत्रण स्वीकार कर लिया। दूसरे दिन लोमड़ी समय से सारस के घर पहुंच गई सारस ने भी भोजन में खीर बनाई। कुछ देर बाद सारस लंबी सुराहीदार बर्तन में खीर परोस कर ले  आया। पतले मुंह वाले बर्तन में सारस तो आसानी से अपनी चोंच से खीर खा पा रहा था किंतु लोमड़ी का मुंह खीर तक नहीं पहुंच पा रहा था। 

कुछ देर बाद सारस ने सारी खीर खत्म कर दी किंतु लोमड़ी अभी तक बिना खीर खाए ही बैठी थी। सारस में लोमड़ी से पूछा - " बहन लोमड़ी !  क्या हुआ तुमने खीर  क्यों नहीं खाई ? क्या खीर अच्छी नहीं बनी है ? "

लोमड़ी समझ गई थी कि सारस अपने अपमान का बदला ले रहा है और लोमड़ी को अपनी गलती का एहसास हुआ। लोमड़ी सारस से बोली - " आज मुझे भूख नहीं है।"  इतना कहकर लोमड़ी वहां से चली गई। 

शिक्षा - लोमड़ी और सारस की कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए।


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