चींटी और टिड्डा |
टिड्डा और चींटी की कहानी | Ant and Grasshopper sotry in hindi -
एक समय की बात है उत्तर भारत के एक हिस्से में एक टिड्डा रहता था । उसी के पास चीटियों का एक झुंड भी रहता था। बसंत ऋतु का मौसम था खाने के लिए टिड्डा और चीटिंयो के पास कोई कमी नहीं थी फिर भी चीटियां सुबह जल्दी उठती और सूर्योदय के पहले ही अनाज ढूंढने निकल जाती और दिन भर अनाज एकत्र करने के बाद वापस लौटकर अनाज को अपने बिल में जमा करती थी ।जबकि टिड्डा दिन भर गाना गाते हुए घूमता फिरता था। टिड्डा चींटियों को देखता और सोचता था - " मैं तो इतनी मौज मस्ती की जिंदगी जी रहा हूं और यह चीटियां दिन-रात इतनी कड़ी मेहनत करके खाना इकट्ठा करने में लगी हुई है ।" टिड्डे को अक्सर चीटियों पर हंसी आती थी।
एक बार अनाज का दाना ले जाते हुए एक चींटी गिर गई , पास में ही टिड्डा बैठा हुआ था । चींटी ने टिड्डे से मदद मांगते हुए बोली - " भाई टिड्डे ! क्या तुम इस अनाज को मेरे बिल तक पहुंचाने में मेरी सहायता कर सकते हो ।"
टिड्डा बोला -" इतना सुहावना मौसम है । तुम्हें इस मौसम का आनंद लेना चाहिए । चारों तरफ कितनी अच्छी हरियाली और खाने के लिए भोजन की कोई कमी नहीं है । सुनहरी धूप निकली हुई है । मैं तो दिनभर गाना गाता हूं और इस सुंदर प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेता रहता हूं जबकि तुम मूर्ख हो जो सूर्योदय से सूर्यास्त तक मेहनत ही करते हो और भोजन संग्रह में लगे हुए हो।"
चींटी बोली - " टिड्डा भाई ! हम यह भोजन गर्मियों के लिए इकट्ठा कर रहे हैं । गर्मी में जब चारों तरफ अनाज की कमी होती है और खाने के लिए कुछ नहीं रहता तब यही भोजन खाकर हम जिंदा रहते हैं। तुम्हें भी गर्मियों के लिए कुछ ना कुछ भोजन संग्रह करके अवश्य रखना चाहिए। "
चींटी की बात सुनकर टिड्डा बोला -" अरे चींटी ! यह सब काम बेवकूफ लोगों के हैं । अभी तो मुझे खाने के लिए पर्याप्त भोजन मिल रहा है तो मैं इसी तरह गाना गाकर आनंद पूर्वक अपना समय बिताना चाहता हूं।"
चींटी और टिड्डा की कहानी |
टिड्डी ने चींटी की कोई सहायता नहीं की और वहां से चला गया। टिड्डे की इस हरकत को देखकर चींटी को बहुत दुख हुआ और चींटी किसी तरह अनाज को उठाकर अपने बिल तक ले गई । चींटी ने यह बात अपनी साथी चीटियों को भी बतलाई।
धीरे-धीरे समय बीतता गया और गर्मी का मौसम आ गया। इस बार की गर्मी अन्य साल की गर्मी से बहुत अधिक तेज थी और चारों तरफ सूखे और अकाल की स्थिति बन गई। चीटियों के पास इस गर्मी में भी खाने की कोई कमी नहीं थी क्योंकि उन्होंने बसंत ऋतु में ही पर्याप्त अन्य इकट्ठा करके रख लिया था। किंतु टिड्डे के पास खाने के लिए कुछ नहीं था उसने अपने आसपास बहुत तलाश किया किंतु कहीं भी हो उसे खाने के लिए कुछ नहीं मिला। टिड्डा कई दिनों से भूखा था और भूख के मारे उसकी हालत खराब थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब उसे क्या करना चाहिए तभी टिड्डे को चीटियों की याद आई जो वसंत ऋतु में ही भोजन इकट्ठा कर रही थी।
टिड्डा संकोच करते हुए चीटियों के घर पहुंच गया और बाहर से ही आवाज लगाता है - " चींटी बहन , चींटी बहन! तभी कुछ चीटियां बाहर आती हैं और टिड्डे को देखकर बोलती हैं- " टिड्डा भाई! क्या हुआ जो इतनी गर्मी में आप यहां भटक रहे हो।"
टिड्डा बोला - " मैंने अपने चारों तरफ अन्य भोजन की तलाश की किंतु मुझे कहीं भी खाने के लिए कुछ नहीं मिला मैं कई दिनों से भूखा हूं । कृपया मेरी कुछ मदद करिए मुझे कुछ भोजन दे दो।"
उसी समय चींटी भी आ गई जिसकी टिड्डी ने कोई मदद नहीं की और उसका मजाक बनाया था। चीटियां टिड्डी को देख करबोली - " जब हम मेहनत करके भोजन इकट्ठा कर रहे थे तब तुमने हमारा बहुत मजाक उड़ाया है । हमारे बार-बार कहने पर भी तुमने भोजन इकट्ठा नहीं किया उल्टे हमें ही मूर्ख और ना जाने क्या-क्या कहा है। ऐसे में हम तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकते क्योंकि यह अनाज हमने आपातकाल में खुद को जिंदा रखने के लिए एकत्र किया है। "
इस प्रकार टिड्डा उदास होकर वहां से जाने लगता है उसे लगने लगता है कि वह भूख से मर जायेगा। तभी चीटियां टिड्डे को बुलाती हैं और उससे वचन लेती हैं कि अगले बसंत में टिड्डा भी मेहनत करेगा और अपने लिए भोजन एकत्र करेगा। टिड्डा चीटियों को वचन देता है और चीटियां उसे भोजन दे देती हैं।
इस प्रकार चीटियों की मेहनत और दयालुता से टिड्डे की जान बच जाती है और टिड्डा भी अगले बसंत में चीटियों के साथ मिलकर खूब मेहनत करता है और गर्मियों के लिए भोजन एकत्र करता है।
शिक्षा - " चींटी और टिड्डा की कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी काम चोरी नहीं करना चाहिए और कोई भी कार्य भविष्य को ध्यान में रखकर ही करना चाहिए। "
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