कौआ चला हंस की चाल |
कौवा चला हंस की चाल | Kouwa Chala Hans Ki Chal -
कौवा चला हंस की चाल एक बहुत ही प्रसिद्ध मुहावरा है | इसका पूरा वाक्य इस प्रकार है - " कौवा चला हंस की चाल और अपनी चाल भी भूल गया । " कौवा चला हंस की चाल कहावत का अर्थ है अपने आप को दूसरे से श्रेष्ठ दिखलाने के लिए उसकी नकल करना और खुद ही अपने स्वाभाविक गुणों को भूल जाना जिससे स्वयं का अपयश होना ।कौवा चला हंस की चाल मुहावरे से जुडी कुछ कहानियां भी हैं जो इस प्रकार है -
कौवे की बात सुनकर हंस को उस पर दया आ गई और उसने कौआ को अपने पंजों मैं दवा कर अपने साथ ऊंचाई पर ले गया और वापस समुद्र के किनारे की तरह उड़ान भरी । कुछ ही देर में कौवा और हंस दोनों ही किनारे पर आ गए। कौआ ने सभी के सामने अपनी गलती पर हंसों से क्षमा मांगी। इसी को कहते हैं कौवा चला हंस की चाल और अपनी चाल भी भूल गया।
एक समय की बात है एक कौवा था । कौवा समुद्र के किनारे एक मानव बस्ती में रहता था। मानव बस्ती के पास रहने के कारण उसे खाने पीने की कोई कमी नहीं थी जिससे वह हट्टा कट्टा और तंदुरुस्त हो गया था। कौवे को अपने शरीर पर बहुत घमंड था वह सोचता था कि उसके सामान बलशाली और कलाबाजी करने वाला दूसरा कोई नहीं है ।
एक बार कहीं से हंसों का झुंड समुद्र किनारे आया। हंसों के सफेद रंग और सुंदर शरीर को देखकर कौआ के मन में ईर्ष्या का भाव उत्पन्न हुआ। हंसो को नीचा दिखाने के उद्देश्य से कौआ हंसों के पास गया और हंसो के मुखिया से बोला- " तुम लोग जिस तरह से उड़ते हो ! क्या कोई पक्षी इस तरह से उड़ान भरता है ? तुम्हें तो उड़ना ही नहीं आता अगर तुम्हें उड़ना सीखना है तो मुझसे सीखो। "
कौवा की बात सुनकर हंसों का मुखिया बोला - " हां भाई आप देखने में तो काफी हष्ट-पुष्ट हो । हो सकता है आप बहुत अच्छे कालाबाज और उड़ने में माहिर हो । हम तो बहुत दूर से आ रहे हैं और हमें कलाबाजियां नहीं आती हमें तो सिर्फ उड़ना आता है ।"
हंसों के मुखिया की बात को सुनकर कौवा बोला - " अगर आप में साहस है तो आप मेरे साथ उड़ने की प्रतियोगिता करो और मुझे कलाबाजी और उड़ने की कलाओं में हराकरदिखलाओ।"
कौआ की घमण्ड से भरी इस तरह की बातों को हंसों के मुखिया ने नजरअंदाज करना चाहा किंतु कौवे के बार-बार घमंड में आकर कहे शब्दों के कारण हंसों का मुखिया कौआ के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार हो गया। इस प्रतियोगिता को देखने के लिए आसपास के सभी पक्षी एकत्र हुए। प्रतियोगिता शुरू हुई प्रारंभ में तो कौवा अपनी तेज गति से उड़ान भरता है और कला बाजियां दिखलाता है किंतु हंस अपनी धीमी गति से ही उड़ता रहता है । कौवा हंस से कुछ आगे निकल जाता है। कौवा कुछ देर उड़ने के पश्चात थकने लगता है और अपने आसपास देखता है तो उसे चारों ओर समुद्र और पानी ही दिखलाई देता है। कौवा अब चाह कर भी वापस नहीं जा सकता था क्योंकि वह समुद्र की सीमा के बहुत अंदर तक पहुँच गया था और थकान के कारण उसका शरीर जवाब दे रहा था । कौवा अब ठीक से उड़ भी नहीं पा रहा था और थकान के कारण बार-बार नीचे आ रहा था और समुद्र के पानी को बार-बार छू रहा था। दूर से हंसों का मुखिया इस सारी घटना को देख रहा था और उसे समझ में आ गया था कि कौवा थकान के कारण उड़ने में ज्यादा देर सक्षम नहीं हो पाएगा इसीलिए वह कौवा के पास गया और बोला - " मित्र क्या तुम्हें उड़ने में किसी प्रकार की कोई समस्या आ रही है । अगर मेरी कोई सहायता की आवश्यकता हो तो बतलाओ ? "
कौआ को अब तक बात समझ में आ चुकी थी कि उसके झूठे घमंड के कारण आज उसकी जान मुश्किल में है । उसने हंस से कहा - " मित्र थकान के कारण मेरा शरीर जवाब दे रहा है । अब मैं उड़ने में असमर्थ हूं अगर थोड़ी देर और हुई तो मैं समुद्र में गिर जाऊंगा । कृपया मुझे बचा लो । "
Kouwa Chala Hans ki Chal |
कौवे की बात सुनकर हंस को उस पर दया आ गई और उसने कौआ को अपने पंजों मैं दवा कर अपने साथ ऊंचाई पर ले गया और वापस समुद्र के किनारे की तरह उड़ान भरी । कुछ ही देर में कौवा और हंस दोनों ही किनारे पर आ गए। कौआ ने सभी के सामने अपनी गलती पर हंसों से क्षमा मांगी। इसी को कहते हैं कौवा चला हंस की चाल और अपनी चाल भी भूल गया।
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