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पंचतन्त्र की कहानियाँ |
पंचतन्त्र की कहानियां | Panchtantra ki kahaniya-
बहुत पुरानी बात है महिल्यारोप नामक नगर में अमर शक्ति नामक राजा राज्य करते थे । राजा बहुत ही योग्य वीर और प्रतापी था । अमर शक्ति के तीन पुत्र थे किंतु तीनों मैं राजा बनने के गुण नहीं थे। राजा ने उन्हें अच्छी शिक्षा देने के बहुत प्रयत्न किए परंतु वह असफल रहा। तभी राजा को उनके एक मंत्री ने आचार्य विष्णु शर्मा के बारे में बतलाया। राजा आचार्य विष्णु शर्मा के पास गए और राजकुमारों को शिक्षा देने का निवेदन किया। आचार्य विष्णु शर्मा ने राजा की बात मान ली और तीनों राजकुमारों को अपने आश्रम लाकर उन्हें शिक्षित करने के लिए कई प्रकार की कहानियों की रचना की। इन कहानियों को मनुष्य और जंगल के जानवरों के पात्रों के माध्यम से मनोरंजक बनाया गया। आचार्य विष्णु शर्मा द्वारा रची गई कहानियों और उनके द्वारा प्रदान की गई शिक्षा के कारण तीनों राजकुमार जल्द ही कुशल राजनैतिज्ञ बन गए।
पंचतंत्र की कहानियों की रचना आचार्य विष्णु शर्मा द्वारा लगभग 2000 साल वर्ष पूर्व की गई थी । पंपंचतंत्र की कहानी की रचना पांच भागों में की गई थी किंतु अब इसके मूल भाग उपलब्ध नहीं है। चतंत्र की कहानियों को पांच खंडों में बंटे होने के कारण होने के कारण पंचतंत्र कहा जाता है।
आईये हम कुछ प्रमुख पंचतन्त्र की कहानियों के बारे में जानते हैं -
1 बन्दर की चतुराई ( पंचतंत्र कहानी) -
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Panchtantra Ki Shikshaprad kahaniyan |
बन्दर और मगरमच्छ की कहानी पंचतन्त्र की सबसे प्रमुख और शिक्षाप्रद कहानियों में से एक है जो सदियों से कही और सुनी जा रही है | बहुत पुरानी
बात है एक तालाब के किनारे जामुन का पेड़ था उस पेड़ पर एक बंदर रहता था | बंदर की दोस्ती एक मगरमच्छ से थी मगरमच्छ उसी तालाब में रहता था | बंदर जब भी जामुन के फल खाता था तो
उसमें से कुछ फल अपने दोस्त मगरमच्छ को भी खिलाता था | इस तरह दोनों की दोस्ती
बड़े मजे से कट रही थी | एक दिन मगरमच्छ ने सोचा – “ मैं अकेला ही जामुन के फल खाता हूं क्यों ना आज
अपनी बीबी के लिए फल ले जाऊं ? “
ऐसा सोचकर मगरमच्छ
अपनी बीबी के लिए जामुन के फल ले गया | मगरमच्छ की बीवी को फल बहुत पसंद आए | उसने
पूछा –“ तुम यह फल कहां से लाते हो ?”
मगरमच्छ
बोला- “ मेरा एक दोस्त है बंदर | वह एक
जामुन के पेड़ पर रहता है और वही मुझे यह फल देता है | हम दोनों प्रतिदिन बड़े मजे
से यह फल खाते हैं |"
मगरमच्छ की बीबी बोली – “ बन्दर रोज इतने मीठे
फल खाता है तो उस बंदर का कलेजा कितना मीठा होगा ? मुझे तो उस बंदर का कलेजा चाहिए
|"
गरमच्छ के
मना करने पर उसकी बीबी नाराज हो गई और उसने मगरमच्छ से बात करना बंद कर दिया |
मजबूरी में मगरमच्छ बंदर का कलेजा लाने के लिए तैयार हो गया | मगरमच्छ अपने दोस्त
बंदर के पास पहुंचा और बोला- “मित्र ! तुम्हारी भाभी को जामुन के फल बहुत अच्छे
लगे और आज उसने तुम्हे घर पर खाने के लिए बुलाया है |"
बंदर
मगरमच्छ की बातों में आ गया और मगरमच्छ के साथ उसके घर जाने के लिए तैयार हो गया | बंदर
बोला- " मैं तैर ही नहीं सकता तो मैं तुम्हारे घर कैसे जाऊंगा |"
मगरमच्छ ने
बन्दर को अपनी पीठ पर बैठा लिया और उसे घर ले जाने लगा | जब दोनों बीच तालाब में
पहुंचे तो बातों ही बातों में मगरमच्छ ने बंदर को बता दिया कि उसकी बीबी को बंदर
का कलेजा चाहिए | मगरमच्छ की बात सुनकर बंदर पहले तो बहुत डर गया फिर वह अपने आप
को संभालते हुए बोला – “ मित्र ! मैं तो अपना कलेजा जामुन के पेड़ पर ही भूल आया
हूं | हम एक काम करते हैं वापस जामुन के पेड़ पर चलते हैं और वहां से मेरा कलेजा
लेकर आ जाते हैं |”
मगरमच्छ मूर्ख था और बंदर की बातों में आ गया | दोनों वापस
जामुन के पेड़ की ओर जाने लगे | जैसे ही दोनों जामुन के पेड़ के पास पहुंचे बंदर
झट से मगरमच्छ की पीठ से कूदकर पेड़ पर चढ़ गया और बोला –“ अरे बेवकूफ ! क्या कोई
भी अपना कलेजा पेड़ पर रखता है | कलेजा तो उसके शरीर में ही रहता है | तुमने मुझे
धोखा दिया है आज से तुम्हारी और मेरी दोस्ती खत्म |”
इसके बाद बंदर ने कभी भी मगरमच्छ को जामुन के फल
नहीं खिलाए और दोनों की दोस्ती टूट गई |
शिक्षा - बन्दर की चतुराई इस पंचतन्त्र कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि मुसीबत के समय घबराना नहीं चाहिए | बुद्धि का
उपयोग करके बड़ी से बड़ी बाधा को टाला जा सकता है|
2 दुष्ट बगुला और केकड़ा की पंचतंत्र कहानी -
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Panchtantra Stories in Hindi |
बहुत पुरानी बात है एक सरोवर में एक
वृद्ध बगुला रहता था | सरोवर के सभी जीव उसे बगुला दादा के नाम से जानते थे | बूढ़ा
होने के कारण वह शिकार करने में असमर्थ हो गया था इसीलिए एक दिन भूख के कारण तालाब के किनारे बैठ कर रो रहा था | तभी एक केकड़े ने उसे
रोता हुआ देखा और उसके पास आकर उसके रोने का कारण पूछा | बगले ने बहाना बनाते हुए
केकड़े को बतलाया कि इस क्षेत्र में जल्दी बहुत बड़ा अकाल कर पड़ने वाला है जिसके
कारण यहां कई वर्षों तक पानी नहीं गिरेगा और कई जीवों की मृत्यु हो जाएगी |
केकड़ा बगुले की बात में आ गया और उसने सरोवर के
सभी जीवों को यह बात बतला दी | सभी जानवर डर के कारण बगुले के पास आकर इसका हल
पूछने लगे | बगुला तो इसी मौके की तलाश में था | बगुले ने बतलाया की पास ही एक विशाल सरोवर है, अगर हम सभी वहां चले
जाएं तो अकाल से बच सकते हैं क्योंकि उस सरोवर में इतना पानी रहता है कि कई सालों
तक अगर पानी ना भी गिरे तो सूखेगा नहीं |
बगुले ने
सभी जीवो को इस बात पर भी राजी कर लिया कि वह सभी को अपनी पीठ पर बैठाकर उस बड़े
तालाब तक पहुंचा देगा | अब बगुला प्रतिदिन तालाब की मछलियों और छोटे-छोटे जीवो को
अपनी पीठ पर बैठा कर ले जाता और एक पहाड़ी पर ले जाकर उन्हें गिरा देता और उनको खा जाता था | बहुत
दिनों तक इसी प्रकार चलता रहा |
एक दिन केकड़े ने बगुले से दूसरे सरोवर तक जाने का अनुरोध किया | बगुला भी उसे ले जाने के लिए तैयार
हो गया | जब दोनों जा रहे थे तभी केकड़े को एक पहाड़ी पर हड्डियों के ढेर दिखे | केकड़े
ने बगुले से उन हड्डियों के ढेर के बारे में जानना चाहा | बगुला जनता था अब केकड़ा
कहीं नहीं जा सकता तो उसने केकड़े को सारी सच्चाई बतला दी और कहा कि वह अब उसे भी खाएगा |
इतना सुनते ही केकड़े ने बगुले की गर्दन को अपने पैने और नुकीले डंक से जकड़
लिया और तब तक जकड़े रहा जब तक कि बगले के प्राण नहीं निकल गए |
इसके बाद
केकड़ा उस स्थान से धीरे-धीरे अपने सरोवर तक आ गया केकड़े को देखते ही तालाब के
सभी सभी जीवो ने उसके वापस लौटने का कारण पूछा | तब केकड़े ने सभी जीवो को बगुले
की सच्चाई के बारे में बतलाया |
शिक्षा- दुष्ट बगुला और केकड़ा की पंचतंत्र कहानी से शिक्षा मिलती है कि किसी की भी चिकनी-चुपड़ी बातों पर आकर उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
3 उल्लू और हंस की पंचतंत्र कहानी -
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पंचतन्त्र की कहानियां |
एक जंगल में ऊंचे पहाड़ की चोटी पर एक दुर्ग था उस दुर्ग
के पास ही एक विशाल पेड़ था पेड़ पर एक उल्लू रहता था। पहाड़ी के नीचे एक तालाब था
जिसमें हंसों का एक झुंड रहता था | उल्लू अक्सर भोजन की तलाश में तालाब के पास
जाया करता था | हंसों को देखकर उल्लू बहुत अधिक प्रभावित हुआ । वह किसी भी तरह
हंसों से दोस्ती करना चाहता था। उल्लू प्रतिदिन तालाब के पास जाकर बैठ जाता था और
किसी ना किसी बहाने हंसो से बात करने का प्रयास किया करता था। धीरे-धीरे उसकी
दोस्ती हंसों के राजा हंसराज से हो गई। हंसराज अब प्रतिदिन उल्लू के साथ बातें किया
करता और उसे अपने घर ले जाकर अच्छा-अच्छा स्वादिष्ट भोजन करवाता था। उल्लू हंस से
दोस्ती करके खुश तो बहुत था मगर उसे मन ही मन चिंता लगी रहती थी कि अगर उसकी
सच्चाई हंसराज को पता चल गई तो वह दोस्ती तोड़ देगा। इसलिए उल्लू अपने आप को
उल्लूओं का राजा उलूकराज बतलाने लगा। उल्लू को किले में होने वाली हर गतिविधि की
जानकारी थी वह किले में सैनिकों की गतिविधियों से भली भांति परिचित था। एक दिन उल्लू
ने हंसराज से कहा-“ मित्र तुम पहाड़ी पर जो दुर्ग देख रहे हो वह मेरा है | मैं
तुम्हारे यहां प्रतिदिन भोजन ग्रहण करता हूं | अब तुम्हे भी कुछ दिनों के लिए मेरा
आतिथ्य स्वीकार करना पड़ेगा।“
हंसराज ने ना जाने के कुछ बहाने
बनाए लेकिन उल्लू नहीं माना और हंसराज को अपने साथ पहाड़ी पर ले गया। जिस समय वह
पहाड़ी पर पहुंचे उस समय सैनिकों की परेड चल रही थी। परेड के बाद सैनिकों ने सलामी
दी। उल्लू हंसराज से बोला- “ मित्र! देखो यह सलामी तुम्हारे लिए है।”
हंसराज यह देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। उल्लू बोला
कि जब तक हंसराज यहां रहेंगे प्रतिदिन इसी तरह सलामी होगी। दूसरे किसी कारण बस
सैनिकों को दुर्ग छोड़ कर जाना था | प्रातः सभी सैनिक दुर्ग छोड़कर जाने लगे | तभी
हंसराज ने उल्लू को सैनिकों के जाने की बात बतलाई। सैनिकों के इस प्रकार अचानक
जाने से उल्लू चिंता में पड़ गया और घू-घू की आवाज निकालने लगा। उल्लू की आवाज को
सैनिकों ने अशुभ समझा और उस दिन जाना स्थगित कर दिया। उल्लू ने हंस को बतलाया कि उसने सैनिकों को रुकने का आदेश दिया है तभी सारे सैनिक रुक गए हैं | दूसरे दिन प्रातः सैनिक जैसे
ही जाने के लिए तैयार हुए उल्लू फिर से
घू-घू की आवाज निकालने लगा । उल्लू
की आवाज सुनकर उनका सेनापति क्रोधित हो गया और उसने सैनिकों को आदेश दिया कि इस
उल्लू को मार दो। सैनिक में धनुष उठाकर उल्लू को निशाना होगे लगाते हुए तीर चला
दिया | तीर उल्लू को ना लगकर बाजू में बैठे हुए हंसराज को लग गया | हंसराज ने
तुरंत ही अपने प्राण त्याग दिए। हंसराज के मारे जाने से उल्लू बहुत दुखी हुआ । उसे
लगा उसके झूठे दिखावे के कारण ही हंसराज की मृत्यु हुई है | उल्लू बेसुध होकर वहीँ
रोने लगा | पास में ही एक गीदड़ यह सब देख रहा था और उसने उल्लू की वेसुधि का
फायदा उठाते हुए उस पर झपट्टा मारकर काम तमाम कर दिया।
शिक्षा – उल्लू और हंस की पंचतंत्र कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि कभी भी
झूठा दिखावा नहीं करना चाहिए |
4 कबूतर और शिकारी की पंचतंत्र कहानी -
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सम्पूर्ण पंचतन्त्र कहानी |
बहुत पुरानी बात है कबूतरों का एक झुण्ड
था | चित्रगुप्त नामक एक कबूतर उस झुंड का राजा था। एक बार कबूतरों का जोड़ा भोजन
की तलाश में कहीं जा रहा था तभी रास्ते में उन्हें एक स्थान पर बहुत सा अनाज बिखरा हुआ
दिखलाई दिया। कबूतरों का झुंड उड़ते-उड़ते बहुत थक चुका था | उन्होंने सोचा कि
नीचे उतर कर कहीं भोजन कर लिया जाए। कबूतरों को एक स्थान पर बिखरा हुआ बहुत सा
अनाज दिखाई दिया | वह अनाज एक बहेलिया अर्थात शिकारी ने फैलाया था और ऊपर पेड़ पर
एक जाल बांध दिया था ।
कबूतरों का झुंड जैसे ही भोजन के
लिए नीचे उतरा वैसे ही शिकारी ने जाल गिरा दिया और सभी कबूतर उस जाल में फंस गए।
यह देखकर चित्रगुप्त बहुत पछताया | झुंड के कबूतरों को लगा शायद आज वह जिंदा नहीं
बच पाएंगे। लेकिन कबूतरों के राजा चित्रगुप्त ने अपना धैर्य नहीं खोया और उसने सभी
कबूतरों से कहा कि वह जैसे ही वह “ फुर्र ” बोले सभी को एक साथ जाल सहित उड़ना है।
यह कार्य कठिन अवश्य था लेकिन नामुमकिन भी नहीं था। चित्रगुप्त के “फुर्र ” बोलते
ही सभी कबूतर एक साथ उड़ गए और उनके साथ जाल भी उड़ने लगा | यह देख कर शिकारी
बहुत आश्चर्यचकित हुआ | उसे लगा कबूतर ज्यादा देर नहीं उड़ पाएंगे और वह कबूतरों के
पीछे-पीछे दौड़ने लगा। लेकिन कबूतर अपनी इच्छाशक्ति से जाल को काफी दूर तक ले
गए।
पास की एक पहाड़ी पर चित्रगुप्त का
मित्र एक चूहा रहता था उसका नाम मूषकराज था। चित्रगुप्त जानता था कि अगर किसी भी
तरह मूषकराज के पास पहुंच गए तो वह इस जाल को काट देगा। उसने अपनी योजना झुण्ड के
सभी कबूतरों को बतलाई सभी ने अपने राजा की बात मानकर उस पहाड़ी की ओर उड़ान भरी।
कबूतरों का झुंड उड़ते-उड़ते उस पहाड़ी पर पहुंच गया जहां मूषकराज रहता था। झुंड
मूषकराज के बिल के सामने उतरा और चित्रगुप्त अपने मित्र को आवाज लगाई। मित्र की
आवाज सुनकर मूषकराज बाहर आया और अपने मित्र चित्रगुप्त की यह हालत देखकर उसे बहुत
दुख हुआ । कबूतरों के राजा चित्रगुप्त ने मूषकराज से जाल काटने के लिए कहा।
मूषकराज ने एक तरफ से जाल काटना प्रारंभ किया और कुछ ही देर में पूरा जाल काट
दिया। सभी कबूतर आजाद हो गए और उन्होंने मूषकराज को धन्यवाद दिया । इस प्रकार
कबूतरों की एकता ने उनकी जान बचाई।
शिक्षा- पंचतन्त्र की इस कहानी से हमें शिक्षा
मिलती है कि एकता में बहुत बल होता है।
5 बगुला, सांप और नेवला की पंचतन्त्र कहानी -
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पंचतन्त्र शिक्षाप्रद कहानियां |
एक समय की
बात है एक पीपल का बहुत पुराना वृक्ष था | उस वृक्ष पर बगुले का जोड़ा निवास करता |
उसी वृक्ष के नीचे एक सांप रहता था | वह सांप अक्सर बगुलों के अंडों को खा जाता था
| इस बात से बगुले का जोड़ा बहुत दुखी था | एक दिन इसी बात से दुखी होकर बगुला नदी
किनारे बैठा हुआ था तभी उसे दुखी देखकर एक केकड़ा उसके पास आया और उसके दुखी होने का
कारण पूछा | बगुले ने केकड़े को सारी बात बता दी |
केकड़े ने
भी मन ही मन सोचा कि यह बगुला तो मेरा जन्मजात दुश्मन है इसे कुछ ऐसा उपाय बताया
जाए जिससे सर्प के सांथ-सांथ इसका भी नाश हो जाए | यह सोचकर केकड़ी ने उसे उपाय बताया कि तुम मांस के कुछ टुकड़े लेकर नेवले की बांबी के सामने डाल दो इसके
बाद बाकी टुकड़ों को उस नेवले की बांबी से शुरू करके सर्प की बांबी तक बिखेर दो | नेवला मांस के टुकड़ों को खाता हुआ सांप की
बांबी तक पहुंच जाएगा और उससे खत्म कर देगा |
केकड़े के
बतलाए अनुसार बगले ने ऐसा ही किया | नेवले ने सांप को तो मार दिया सांथ ही बगुले के
अंडों को भी खा गया इस प्रकार बगुले ने अपनी मूर्खता से अपना ही नुकसान कर लिया |
शिक्षा – इस पंचतन्त्र की कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि कोई भी कार्य सोच समझ कर करना चाहिए |
6 मूर्ख मित्र पंचतन्त्र की कहानी -
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सम्पूर्ण पंचतंत्र कहानियां |
एक राजा था उसके राज महल में बहुत से
सेवक और सेविकाएँ थी | राजा के महल में एक बन्दर रहता था जो राजा की बहुत सेवा करता था | राजा बंदर को अपना मित्र मानता था और उस पर विश्वास भी करता था | बंदर बिना रोक-टोक राज महल
में कहीं भी जा सकता था |
लेकिन एक समस्या थी कि बन्दर मंदबुद्धि था | कई बार राजा के
मंत्रियों ने राजा को समझाया कि मंदबुद्धि होने के कारण इसे अपनी सेवा में ना रखें
| लेकिन राजा ने अपने मंत्रियों की बात नहीं मानी |
गर्मियों के दिनों की बात है जा सो रहा था | पास ही उसका विश्वास पात्र
सेवक पंखा चला रहा था | उसी समय एक मक्खी आकर बार-बार राजा की छाती पर बैठ जाती थी
| सेवकों उसे बार-बार भगाता लेकिन वह फिर आकर वहीँ बैठ जाती थी |
मक्खी की इस हरकत
से बन्दर को क्रोध आ गया और उसने अपने हाथ में एक तलवार तलवार ली और जैसे ही मक्खी
राजा के शरीर पर बैठी उसने पूरी ताकत से मक्खी के ऊपर तलवार चला दी | मक्खी तो उड़
गई लेकिन तलवार सीधी राजा की छाती में लगी और राजा वही मर गया।
शिक्षा- मूर्ख मित्र पंचतन्त्र की कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि मूर्ख मित्र से विद्वान शत्रु अच्छा होता है।
7 स्त्री का गुलाम ( पंचतंत्र कहानी) -
बहुत पुरानी बात है नामक दक्षिण भारत के
एक शहर में नंद नामक प्रतापी राजा राज्य करता था उसके राज्य की सीमाएं दूर दूर तक
फैली हुई थी । राजा नंद का एक विश्वासपात्र मंत्री था जिसका नाम वररुचि था | वह सभी शास्त्रों में पारंगत था | राजा और
उसके मंत्री वररुचि की पत्नियों का स्वभाव बहुत तेज था |
एक दिन की बात
है मंत्री की पत्नी किसी कारणवश रूठ गई | मंत्री
ने उसे मनाने का बहुत प्रयत्न किया किंतु वह नहीं मानी | अंत में मंत्री ने उसकी
पत्नी को वचन दिया कि वह जो बोलेगी वह करेगा | मंत्री की पत्नी ने कहा – “ अगर तुम
मुझे प्रसन्न देखना चाहते हो तो तुम्हें अपना सिर मुंडवा कर मेरे पैरों में गिर कर
मुझे मनाना पड़ेगा ।“ मंत्री ने वैसा ही
किया जैसा उसकी पत्नी ने कहा ।
संयोगवश उसी
दिन राजा की पत्नी भी उसे रूठ गई और वह भी राजा के बार-बार मनाने पर भी नहीं मान
रही थी। राजा ने कहा – “ प्रिय! तुम्हारी यह दसा मुझसे देखी नहीं जाती | तुम जो
कहोगी उसे मैं उसे पूरा करूंगा | ”
राजा की
पत्नी बोली- “ ठीक है अगर आप मुझे मनाना चाहते हैं तो मेरे लिए घोड़ा बन जाइए और
मैं आपकी पीठ पर बैठकर आपके मुंह में लगाम लगाकर आपको दौड़ाऊँगी |” राजा ने रानी की
इच्छा पूरी की।
राजभवन के सैनिकों ने यह सब देख लिया और यह बात राजभवन मे और मंत्रियों तक भी पहुँच गई | दूसरे दिन
जब दरबार लगा तो अपने मंत्री को देखकर राजा ने उसके सिर मुंडवाने का कारण पूछा |
मंत्री ने भी राजा के प्रश्न का उत्तर देते हुए
कहा – “महाराज मैंने भी उसी कारण से अपना सिर मंगवाया है जिस कारण से पुरुष मुंह
में लगाम डालकर घोड़ा बन जाते हैं। ” मंत्री की
यह बात सुनकर राजा बहुत लज्जित हुआ |
शिक्षा- स्त्री का गुलाम इस पंचतन्त्र कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि कभी भी
स्त्री की गुलामी नहीं करनी चाहिए |
8 मूर्खों को उपदेश देने का
नतीजा (पंचतंत्र कहानी) -
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Panchtantra Stories in Hindi |
बहुत पुरानी बात है पर्वतीय क्षेत्र में
एक वृक्ष पर एक गौरैया रहती थी । जिस पेड़ पर गौरैया रहती थी उसी पेड़ पर लाल रंग
के अंगार के समान फल लगे हुए थे | पास में ही बंदरों का एक झुंड रहता था। सर्दियों
का मौसम था बर्फबारी हुई थी जिसके कारण ठंडी बहुत तेज थी। ठंड के कारण बंदर थर-थर कांप रहे थे ।
पेड़ पर लगे
हुए लाल फलों को देखकर कुछ बंदरों को लगा कि यह आग के फल है | बंदर उस पेड़ पर आ
गए और फलों को बार-बार फूंक कर आग सुलगाने का प्रयास करने लगे। यह देख कर चिड़िया
को हंसी आ गई और चिड़िया ने बंदरों को बतलाया कि यह अंगार नहीं है इन्हें फूंकने
से सर्दी नहीं जायेगी | ठंडी हवाएं चल रही हैं अगर वे गुफाओं में चले जायें तो
उन्हें वहां ठंडी हवाएं नहीं लगेगी और ठंड से कुछ राहत भी मिलेगी।
चिड़िया की
बात एक बूढ़ा बंदर सुन रहा था | चिड़िया की बात सुनकर बूढ़े बंदर ने चिड़िया को
समझाया कि वह मूर्ख बंदरों से कुछ ना बोले अन्यथा वह उसी को नुकसान पहुंचा देंगे जो इन्हे अच्छी सलाह देता है । बूढ़ा बंदर
अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि कहीं से एक बंदर आया और उसने चिड़िया का
घोंसला तोड़कर चिड़िया के पंख पकड़ कर उसे जोर से जमीन पर पटक दिया बेचारी चिड़िया
बिना दोष के ही मूर्खों को ज्ञान देने के कारण मारी गई।
शिक्षा - पंचतन्त्र की इस
कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि मूर्खों को कभी भी उपदेश नहीं देना चाहिए।
9 घर का भेदी (पंचतंत्र कहानी) -
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पंचतंत्र की कहानियां |
प्राचीन काल में एक राजा
था। राजा का एक पुत्र था एक बार राजकुमार के पेट में सांप चला गया और सांप ने राजकुमार
के पेट को ही अपना बिल बना लिया और उसी में रहने लगा। पेट में सांप होने के कारण राजकुमार
दिन प्रतिदिन कमजोर होने लगा और उसका स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा | राजा ने
राजकुमार का बहुत उपचार कराया परंतु उसके स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ। राजकुमार की हालत देखकर राजा और उसका परिवार बहुत दुखी रहने लगा | राजकुमार अपने परिवार और माता पिता की हालत देखकर राजभवन छोड़कर दूसरे राज्य चला
गया और एक मंदिर में सामान्य भिखारी की तरह रहने लगा।
जिस राज्य
में राजकुमार भिखारी की तरह रहता था उसी राज्य के राजा की दो पुत्रियां थी | उनमें
से एक पुत्री हमेशा मधुर बोलती थी चाहे वह झूठ हो या सच और दूसरी पुत्री सच्ची
बातें बोलती थी | राजा को अपनी दूसरी पुत्री की सच्ची बातें अच्छी नहीं लगती थी | एक
दिन उसने दूसरी पुत्री पर क्रोधित होकर अपने मंत्रियों को आदेश दिया कि इसका विवाह
किसी निर्धन से कर दिया जाए । मंत्रियों ने राजा की आज्ञा का पालन किया और मंदिर
में ठहरे हुए राजकुमार को निर्धन समझकर राजकुमारी का विवाह उससे करा दिया। दोनों ने
वह राज्य छोड़ दिया और जाकर एक तालाब किनारे रहने लगे |
एक दिन राजकुमारी कुछ सामान लेने बाहर गई थी
और जब लौट कर आई तो उसने देखा कि राजकुमार तालाब के किनारे सो रहा है और उसके मुंह
से एक सांप बाहर निकला हुआ है जो पास में ही बिल में रहने वाले दूसरे सांप से बात
कर रहा है। बिल वाला सांप पेट वाले सांप को खरी-खोटी सुनाते हुए कहता है कि उसने
राजकुमार का जीवन बर्बाद कर दिया है |
पेट वाला
सांप क्रोधित होकर कहता है – “ तू भी जिस स्थान पर रह रहा है उसके नीचे स्वर्ण कलश
है और तू भी इस स्वर्ण कलश को दूषित कर रहा है।“
बिल वाला
सांप कहता है – “ कोई भी इस राजकुमार को उबली हुई राई की कांजी पिलाकर तुझे मार
सकता है।“ पेट वाला सांप बदले में कहता है – “ कोई भी इस बिल में उबला
हुआ तेल डालकर तुझे भी मार सकता है।“
दोनों सांपों की बात राजकुमारी ने सुन ली और
उसने वही उपाय किए जो सांपों ने एक दूसरे को मारने के लिए बतलाए थे | इस प्रकार
राजकुमारी ने राजकुमार के पेट में रहने वाले सांप को मार दिया जिससे राजकुमार पूरी
तरह स्वस्थ हो गया और दोनों ने बिल में रहने वाले सांप को मारकर वहां रखे हुए
स्वर्ण कलश को निकाल लिया। इस प्रकार अब दोनों की निर्धनता दूर हुई और दोनों सुख
पूर्वक रहने लगे |
राजकुमार के
स्वस्थ होने पर उसे लगा कि अब अपने राज्य वापस चला जाए । राजकुमार अपनी पत्नी को लेकर
अपने राज्य लौट आया | घर आने पर उसके माता-पिता बहुत खुश हुए और बड़े धूमधाम से
उनका स्वागत किया।
शिक्षा - इस पंचतन्त्र कहानी से शिक्षा मिलती है कि कभी भी अपना भेद नहीं खोलना चाहिए।
10 चालाक
खरगोश और शेर की पंचतंत्र कहानी -
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चालक खरगोश और शेर की कहानी |
शेर और चालक खरगोश पंचतन्त्र की सबसे शिक्षाप्रद कहानियों में से एक है | एक समय की बात है एक जंगल में भासूरक नामक खूंखार शेर रहता था। वो जब भी अपनी गुफा से निकलता तो उसके
रास्ते में जो भी जानवर मिलते उन्हें मार देता था उनमें से कुछ जानवरों को खा लेता था और बाकी को
छोड़ देता था। इसी कारण जंगल के सभी जानवर बहुत ज्यादा डरे हुए थे |
एक दिन जंगल
के सभी जानवरों ने सभा बुलाई। सभा में तय हुआ कि जंगल के जानवरों में से प्रतिदिन
एक जानवर शेर का भोजन बनकर उसके पास जाएगा | इस प्रकार शेर के भोजन की व्यवस्था भी हो जाएगी
और जंगल के दूसरे जानवरों के प्राण भी बज जाएंगे | सभी ने मिलकर शेर के पास जाने
का निर्णय लिया | सभी शेर के पास पहुंचे और अपना यह प्रस्ताव शेर को सुनाया |
शेर को प्रस्ताव अच्छा लगा उसने चिल्लाते हुए
कहा कि अगर किसी दिन जंगल से जानवर नहीं आया तो वह अपनी गुफा से निकलकर सभी
जानवरों को मार देगा। अब प्रतिदिन जंगल से एक जानवर शेर के पास जाने लगा।
एक दिन शेर के पास जाने के लिए एक खरगोश का नंबर
आया | खरगोश शेर की गुफा की तरफ जा रहा था लेकिन डर के कारण उसके पैर कांप रहे थे |
वह धीरे धीरे चला जा रहा था कि रास्ते में उसे एक कुआं दिखलाई दिया | खरगोश ने कुएं में झांका तो उसे कुएं में अपनी परछाई दिखी |
खरगोश के मन में विचार आया कि क्यों ना शेर को यहां तक लाकर इस कुएं में गिरा दिया
जाए | खरगोश जब शेर के पास पहुंचा तो शेर बहुत नाराज हुआ और उसके विलंब का कारण
पूछा | खरगोश ने मनगढ़ंत कहानी बनाते हुए
कहा – “ महाराज ! हम पांच खरगोश आ रहे थे
किंतु रास्ते में उन्हें एक शेर मिल गया | हमने उसे बताया कि हम महाराज भासूरका के पास उनका
भोजन बनने जा रहे हैं | उसने कहा कि जंगल में उसके अलावा और कोई राजा नहीं हो सकता
| उसने चार खरगोशों को खाकर मुझे छोड़ दिया ताकि मैं आपके पास आकर यह जानकारी दे
सकूं कि उसने आपको युद्ध के लिए ललकारा है।“
खरगोश की
बात सुनकर शेर अत्यधिक क्रोधित हुआ और उसने खरगोश को दूसरे शेर के पास चलने के
लिए कहा। खरगोश भी शेर को उस कुएं के पास ले गया और कहा कि वह शेर इसी गुफा में
रहता है | शेर ने कुआं के अंदर झांका तो उसे कुएं में अपना प्रतिबिंब दिखलाई दिया |
अपने प्रतिबिंब को ही दूसरा शेर समझकर शेर ने जोरदार दहाड़ लगाई प्रतिक्रिया
स्वरूप कुंए के अंदर से भी उतनी ही तेज आवाज सुनाई दी। शेर को लगा कि सामने वाला शेर
भी मुझे युद्ध के लिए चुनौती दे रहा है | बिना विचार किए शेर ने कुएं के अंदर
छलांग लगा दी और उसी पानी में डूब कर मर गया। खरगोश ने लौटकर यह जानकारी अपने सभी
साथियों को सुनाई | यह समाचार सुनकर सभी बहुत प्रसन्न हुए और सभी ने खरगोश की बहुत
तारीफ की | इस प्रकार खरगोश की चालाकी से उसकी जान भी बच गई और जंगल के सभी
जानवरों को खतरनाक शेर से मुक्ति भी मिल गई |
शिक्षा - पंचतन्त्र की कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि बड़ी से
बड़ी मुसीबत को भी बुद्धि का उपयोग करके आसानी से दूर किया जा सकता है।
11 बोलने वाली गुफा ( पंचतंत्र कहानी) -
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Panchtantra stories in Hindi |
एक समय की बात है एक जंगल में शेर रहता
था | एक बार दिनभर शिकार की तलाश करने के बाद भी उसे कोई शिकार नहीं मिला | शाम हो
गई थी शेर को पास में ही एक गुफा दिखलाई दी शेर ने सोचा क्यों ना आज रात इस गुफा
में बिता लूं ? रात में इस गुफा में कोई ना कोई जानवर जरूर आएगा, उसका शिकार करके मैं अपना पेट भी भर लूंगा
| इतना सोच कर शेर गुफा में चला गया | वह गुफा एक गीदड़ की थी | गीदड़ जैसे ही अपनी
गुफा के पास आया उसने देखा गुफा के अंदर जाते हुए शेर के पैरों के निशान हैं किंतु आने के
निशान नहीं है। गीदड़ सोच में पड़ गया कि अब कैसे पता लगाऊं कि इस गुफा के अंदर शेर
है या नहीं | तभी उसे एक उपाय सूझा वह
गुफा की तरफ मुंह करके बोला- “ मेरी बोलने वाली गुफा मैं आ गया हूं आज तू चुपचाप
क्यों है ? मुझसे बात क्यों नहीं कर रही है?
गीदड़ की आवाज सुनकर शेर को लगा कि शायद यह गुफा
गीदड़ से बात करती है और आज मेरे कारण यह बोल नहीं रही है | अगर गुफा ने गीदड़ से
बात नहीं की तो गीदड़ लौट जाएगा इसीलिए शेर ने खुद ही बोल दिया – “ गीदड़ अंदर आ
जाओ ।“
शेर की आवाज सुनकर गीदड़ समझ गया कि गुफा के
अंदर कोई शेर है और वह वहां से भाग गया इस प्रकार शेर की मूर्खता के कारण हाथ आया
हुआ शिकार भी चला गया।
शिक्षा – बोलने वाली गुफा पंचतन्त्र कहानी से शिक्षा मिलती है कि समझदारी
और पूर्वाभास से बड़े से बड़े खतरे को टाला जा सकता है |
12 रंगा
सियार की पंचतंत्र कहानी -
एक समय की
बात है एक जंगल में एक सियार रहता था | एक बार शिकार करने के दौरान वह घायल हो गया
और उसके पैर में चोट आ गई। चोट के कारण कई दिनों तक वह अपनी गुफा में आराम करता
रहा | इस दौरान भोजन ना मिलने के कारण वह काफी कमजोर हो गया। कुछ दिनों बाद वह शिकार
करने के लिए बाहर निकला | उसने कुछ छोटे जानवरों जैसे खरगोश, गिलहरी आदि का शिकार
करने का प्रयत्न किया परंतु कमजोर होने के कारण वह उनका पीछा नहीं कर पाया |
इस तरह
घूमते-घूमते सियार मानवों की बस्ती में जा पहुंचा | उसने सोचा यहां मुझे आसानी से छोटे शिकार
मिल जाएंगे। वह बस्ती में घूम रहा था तभी कुछ कुत्तों ने उसे देख लिया और उसके
पीछे पड़ गए | कई दिनों से भूखा होने के कारण ज्यादा तेज नहीं दौड़ पा रहा था
उसे लगा कि आज उसका शिकार हो जाएगा | दौड़ते-दौड़ते वह कपड़ा रंगने वालों की बस्ती
में जा पहुंचा। वहां एक ड्रम रखा हुआ था सियार उस ड्रम में कूद गया | ड्रम के अंदर
कपड़ा रंगने का नीला रंग था। जब तक कुत्ते वहां से चले नहीं गए तब तक सियार ड्रम
के अंदर ही रहा | कुत्तों के जाने के बाद वह ड्रम से बाहर आकर जंगल की ओर भाग गया।
रंग में रंगने के कारण सियार का पूरा शरीर नीले
रंग का हो गया था । सियार जब जंगल पहुंचा तो तो उसका अजीब सा नीला रंग देखकर देखकर
जंगल के सारे जानवर उससे डर रहे थे। सियार को समझ में नहीं आ रहा था कि सभी जानवर
उससे डर कर क्यों भाग रहे हैं ? तभी उसे समझ में आया कि उसके अजीब से नीले रंग के
कारण ही जानवर उससे डर रहे हैं | सियार ने इसका फायदा उठाकर एक योजना बनाई । उसने
जंगल के सभी जानवरों को बुलाया और बतलाया – “ मेरा नाम ककुदुम है | ईश्वर ने मुझे
अजीब रंग देकर इस धरती पर भेजा है | ईश्वर ने जब देखा कि जंगल में आप का कल्याण
करने के लिए कोई शासक नहीं है तो उन्होंने मुझे इस जंगल का राजा बना कर भेजा है
ताकि मैं आपकी और इस धरती पर सभी जानवरों की सेवा कर सकूं।“
जंगल के सभी जानवर उस धूर्त शियार की बातों में
आ गए और सभी ने उसे अपना राजा बना लिया | अब तो सियार के बड़े मौज थे | हाथी, शेर,
बाघ, चीता सभी उसकी सेवा में लगे हुए थे | उसे जो अच्छा लगता बैठे-बैठे खाने के लिए
मिल जाता था जहां जाता था बहुत से जानवर उसकी सेवा में उसके साथ चलते थे | सियार
जानता था कि अगर इस जंगल में उसके साथी सियार भी रहे तो वे उसे पहचान जाएंगे और उसका राज खुल जायेगा | इसलिए
उसने सभी सियारों को जंगल से बाहर भगा दिया। एक दिन चांदनी रात में जब सियार अपनी गुफा से बाहर निकला तो उसे दूर से
सियारों की “ हुआ-हुआ “ की आवाज आ रही थी | नीले रंग का सियार अपना आपा खो बैठा और
अपनी जन्मजात प्रवृत्ति के अनुसार चांद की तरफ मुंह करके “ हुआ-हुआ “ चिल्लाने
लगा। रंगा सियार को इस तरह ” हुआ-हुआ” चिल्लाते जंगल के जानवरों ने देख लिया और वे समझ
गए कि यह तो धूर्त सियार है | सभी ने उसे इतना मारा इतना मारा कि उसके प्राण पखेरू
उड़ गए।
शिक्षा- पंचतन्त्र की कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि झूठ और
फरेब ज्यादा दिन नहीं चल सकता।
13 राक्षस, चोर और बन्दर की पंचतंत्र कहानी -
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पंचतंत्र की कहानियां |
बहुत पुरानी बात है एक राजा था । राजा की एक राजकुमारी थी राजकुमारी को हमेशा हे डर लगा रहता था कि कोई राक्षस उसका अपहरण कर लेगा। राजा ने राजकुमारी की सुरक्षा में कड़ा पहरा लगा दिया। एक दिन एक राक्षस किसी तरह छुपते छुपाते राजकुमारी के कक्ष में आ गया | उसी समय राजकुमारी अपनी सहेली से कह रही थी - " यह दुष्ट शाकाल बहुत परेशान करने लगा है इसका कुछ ना कुछ करना ही पड़ेगा।"
राक्षस उन दोनों की बात सुन रहा था । राक्षस को लगा यह शाकाल अवश्य ही कोई भयानक राक्षस है , मुझे इसके बारे में जानना होगा। इतना सोच कर राक्षस घोड़ों की अश्वशाला में चला गया और घोड़े का रूप बनाकर वहीं रुक गया । उसी रात एक चोर घोड़े चुराने की नियत से अश्वशाला में घुस गया। अश्वशाला में अश्व रूपी राक्षस उसे सबसे हट्टा कट्टा दिखलाई दिया घोडा चुराने की नियत से वह अश्वरुपी राक्षस की पीठ पर बैठ गया और उसकी लगाम अपने हाथ में ले ली।
राक्षस को लगा यह अवश्य ही शाकाल है और मुझे पहचान गया है इसलिए मुझे मारना चाहता है और मुझे मारने की नियत से मेरी पीठ पर बैठ गया है। लेकिन अब वह कुछ कर भी नहीं सकता था क्योंकि उसकी लगाम अब चोर के हाथ में थी। अश्व को चुराने की नियत से चोर ने उसे चाबुक मारा । चाबुक लगते ही अश्वरूपी राक्षस भागने लगा कुछ दूर जाने पर चोर ने उसे रोकने के लिए उसकी लगाम खींची किंतु वह नहीं रूका । चोर ने उसे रोकने का काफी प्रयत्न किया किंतु वह नहीं रुक रहा था । चोर को लगा कि यह अवश्य कोई राक्षस है और आगे जाकर मुझे गिरा कर मार देगा। रास्ते में उसे एक विशाल वृक्ष दिखाई दिखलाई दिया चोर उसकी शाखा पकड़कर उस पर चढ़ गया और अश्वरूपी रूपी राक्षस आगे निकल गया।
जिस शाखा पर चोर था उसके ऊपर की शाखा पर एक बंदर बैठा हुआ था | वह अश्वरुपी राक्षस का मित्र था अपने मित्र राक्षस को इस तरह भागता देख कर बन्दर ने जोर से उसे आवाज लगाई - " मित्र यह कोई राक्षस नहीं अपितु एक साधारण सा मानव है । तुम चाहो तो पल भर में इसे मारकर खा सकते हो।"
बंदर की इस तरह की बातों से चोर को बहुत गुस्सा आ रहा था। बंदर की पूंछ उसके सामने लटक रही थी जिसे चोर ने पकड़ कर अपने मुंह में दबा लिया और उसे चबाने लगा। बंदर को बहुत दर्द हो रहा था किन्तु राक्षस को दिखाने के लिए वह चुपचाप दर्द सहता रहा किन्तु उसके चहरे के भाव सब बतला रहे थे । बंदर की इस अजीब स्थति को देखकर राक्षस बोला- " मित्र तुम कुछ कहो या ना कहो किन्तु तुम्हारे चेहरे के हाव-भाव बतला रहे हैं कि तुम्हे भी इस शाकाल राक्षस से बहुत डर लग रहा है।"
इतना कहकर अश्वरूपी रूपी राक्षस अपनी जान बचाने के लिए भाग गया।
14 चुहिया का स्वयंवर (पंचतंत्र कहानी ) -
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सम्पूर्ण पंचतन्त्र कहानियां |
बहुत पुरानी बात है एक बाज एक चुहिया को अपनी चोंच में दबाकर ले जा रहा था, तभी चुहिया उसकी चोंच से छूट गई और नीचे स्नान कर रहे ऋषि के हाथों में जाकर गिरी। ऋषि और उनकी पत्नी की कोई संतान नहीं थी ऋषि ने अपने तपोबल से चुहिया को स्वस्थ कर कन्या का रूप दे दिया। जब कन्या विवाह योग्य हुई तो ऋषि ने उसके लिए योग्य वर की तलाश प्रारंभ कर दी। ऋषि को सूर्य वर के रूप में बहुत पसंद था तो उन्होंने अपनी कन्या से उसकी इच्छा जाननी चाही । कन्या ने कहा - " सूर्य तो अत्यधिक गर्म है कृपया इससे अच्छा वर देखें । मुनि ने सूर्य से भी अच्छा वर खोजने का प्रयास किया तो मेघ ( बादल) उन्हें सूर्य से अच्छा लगा जो सूर्य को भी ढक लेता है। ऋषिवर ने अपनी कन्या से मेघ के बारे में पूछा। ऋषि कन्या ने उत्तर दिया - " मेघ की गर्जना से बहुत डरावनी होती है कृपया इससे अच्छा वर देखें ।" ऋषिवर ने मेघ से भी अच्छे वर की तलाश की तो उन्हें बतलाया गया कि पवन अधिक श्रेष्ठ है जो मेघों को किसी भी दिशा में उड़ा कर ले जाने में सक्षम है। ऋषि ने अपनी पुत्री से पवन के बारे में पूछा । ऋषि पुत्री ने कहा - " यह तो हमेशा घूमता रहता है इसका स्वभाव बड़ा चंचल है कृपया इससे अच्छा बस देखें " । ऋषि ने पवन से भी अच्छे वर की तलाश की तो उन्हें पता चला की पर्वत पवन का रास्ता रोक देते हैं और उसे आगे नहीं बढ़ने देते । ऋषि ने कन्या से पर्वत के बारे में उसका मत जानना चाहा । कन्या ने कहा - " यह तो बहुत कठोर और स्थिर है कृपया इससे अच्छा वर ढूंढो। " ऋषि ने पर्वत से भी अच्छे वर की तलाश करने पर उन्हें पता चला चूहा पर्वत से भी श्रेष्ठ है जो पर्वत को भी तोड़ कर उसमें अपना बिल बना लेता है। ऋषि ने चूहे से विवाह के संबंध में अपनी कन्या से जानना चाहा। चूहे का नाम सुनकर ऋषि कन्या को विलक्षण अपनापन अनुभव हो रहा था ऋषि कन्या ने चूहे से विवाह के लिए हामी भर दी। ऋषि ने अपनी कन्या को तपोबल से चुहिया का रूप दे दिया और चूहे के साथ उसका विवाह करवा दिया।शिक्षा - चुहिया का स्वयंवर कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें वाही वस्तु अच्छी लगती है जिससे हम पहले से जुड़े हों |
15 मूर्ख मण्डली (पंचतंत्र कहानी) -
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पंचतन्त्र कहानियाँ |
बहुत पुरानी बात है एक जंगल था उस जंगल में एक पक्षी रहता था । पक्षी की विष्ठा ( मल) में स्वर्ण कण पाए जाते थे । उस पक्षी को इस बात का बहुत घमंड था । एक बार कहीं से एक शिकारी जंगल में आया । शिकारी अपने रास्ते से जा रहा था उसी रास्ते के सामने पेड़ पर पक्षी बैठा हुआ था । शिकारी पक्षी को अनदेखा कर आगे निकल गया । पक्षी को यह बात अच्छी नहीं लगी कि कोई उसे अनदेखा करें । पक्षी शिकारी के पास जाकर उसके ऊपर विष्ठा कर देता है । शिकारी जब यह देखता है कि उसके ऊपर किसी पक्षी ने मल त्याग दिया है और पक्षी के मल ( विष्ठा ) में स्वर्ण कण है तो वह स्वर्ण कणों के लालच में जाल फैला कर उस पक्षी को पकड़ लेता है और अपने साथ घर ले जाता है । घर ले जाकर पक्षी को एक पिंजरे में बंद कर देता है और पक्षी के द्वारा त्य्गे गए मल से स्वर्णकर निकालकर उन्हें बाजार में बेचने लगता है । धीरे-धीरे स्वर्ण कणों के बेचने से शिकारी की आर्थिक स्थिति सुधर जाती है । शिकारी को लगने लगता है कि अगर कभी राजा को यह बात पता चल गई तो राजा उसे दंड देगा । दंड के डर से शिकारी पक्षी को राजा के पास ले जाता है और उसे सारी बात बतला देता है । राजा इस संबंध में अपने मंत्रियों से सलाह लेता है । मंत्री राजा को सलाह देते हैं कि आप इस मूर्ख शिकारी की बातों में ना आएं कभी भी किसी भी पक्षी के मल में स्वर्ण कण नहीं हो सकते । राजा अपने मंत्रियों की बातें मान लेता है और पक्षी को पिंजरे से आजाद कर देता है सांथ ही शिकारी को भी जाने देता है । पक्षी पिंजरे से निकलकर आसमान में उड़ जाता है और जाते-जाते राजा के राज महल के गेट पर बैठकर वहां विष्ठा कर देता है और हंसते हुए कहता है कि यह शहर तो मूर्खों का शहर है पहला मूर्ख में था जिसने जाते हुए शिकारी पर विष्ठा कर दी जिसके कारण शिकारी मुझे पिंजरे में बंद कर देता है दूसरा मूर्ख शिकारी था जो स्वर्ण कणों को छोड़कर मुझे राजा के पास ले जाता है और तीसरा मूर्ख राजा था जो अपने मूर्ख मंत्रियों की सलाह मानकर मुझे छोड़ देता है । इस प्रकार यह शहर ही मूर्खों का शहर है जिसमें मूर्ख मंडली रहती है।
शिक्षा - मूर्ख मण्डली पंचतन्त्र की इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि कोई भी कार्य करने से पहले उसके बारे में अच्छे से सोच लेना चाहिए |
16 राजा और हंस की पंचतन्त्र कहानी -
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Panchtantra Hindi |
बहुत पुरानी बात है एक राजा था उस राजा के राज्य में एक बहुत सुंदर तालाब था। उस तालाब की सुंदरता पर मोहित होकर हंसों का एक झुंड राजा के राज्य में आ गया और तालाब में रहने लगा । प्रत्येक 6 माह में हंसों के शरीर से सोने के पंख गिरते थे जिन्हें वह तालाब में रहने के बदले कर के रूप में राजा को दे दिया करते थे। एक बार उस तालाब में कहीं से एक बड़ा पक्षी आ गया और हंसों के बीच रहने लगा। बड़ा पक्षी हंसों पर अपनी धाक जमाने का प्रयास करने लगा । हंसों को यह बात अच्छी नहीं लगती थी और बड़े पक्षी से अक्सर उनका विवाद हो जाता था। एक बार बड़े पक्षी और हंसों में झगड़ा हो गया और सभी हंसों ने मिलकर उस पक्षी को बहुत मारा। बड़ा पक्षी राजा के पास पहुंच गया और हंसों से शिकायत करते हुए बोला - " महाराज यह हंस आपके राज्य में रहते हैं किन्तु आपसे बिल्कुल भी नहीं डरते हैं और कहते हैं कि हमारे सोने के पंखों से इस राजा का राज्य चल रहा है । बड़े पक्षी की यह बात सुनकर सच झूठ का फैसला किए बगैर ही राजा उसकी बातों में आ जाता है और अपने सैनिकों हंसो को बंदी बनाकर लाने का आदेश देता है । सैनिकों का झुंड हंसों को पकड़ने के लिए तालाब की ओर रवाना हो जाता है । सैनिकों को अपने और आता हुआ देखकर हंसों का राजा समझ जाता है कि बड़े पक्षी की बात बातों में आकर राजा ने अवश्य ही हंसों को पकड़ने के लिए सैनिकों को भेजा है। सैनिकों के आने के पहले ही हंस तालाब को छोड़कर उड़ जाते हैं और राजा के राज्य को छोड़ देते हैं।
शिक्षा - " पंचतन्त्र की इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि किसी की सुनी सुनाई बातों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। "
17 घमण्डी मूर्ख ऊँट की पंचतन्त्र कहानी -
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पंचतन्त्र की शिक्षाप्रद कहानियां |
एक समय की बात है एक कारीगर था वह बहुत गरीब था । वह बहुत मेहनत करके काम करता था फिर भी काम के बदले अच्छे पैसे नहीं मिल पाते थे जिससे उसकी दरिद्रता दूर नहीं हो रही थी। एक दिन कारीगर ने सोचा क्यों ना गांव को छोड़ कर शहर चला जाऊं वहां अच्छी मेहनत करूंगा तो मुझे पैसे भी अच्छे मिलेंगे। कारीगर जब गांव से शहर जा रहा था तो रास्ते में उसे एक ऊंटनी मिली जो बहुत बीमार थी और ऊंटनी के सांथ पास में उसका बच्चा भी था। कारीगर को ऊंटनी और उसके बच्चे को देखकर दया आ गई । वह ऊंटनी और उसके बच्चे को अपने सांथ घर ले आया। घर लाकर कारीगर ने उसकी बहुत सेवा की और उसका इलाज करवाया । कुछ ही दिनों में ऊंटनी स्वस्थ हो गई। कारीगर माल ढोने के लिए ऊंटनी का इस्तेमाल करने लगा । कुछ ही दिनों में कारीगर का धंधा चल गया कारीगर ने सोचा क्यों ना एक और ऊंटनी खरीद ली जाए । इस प्रकार कारीगरने एक-एक करके बहुत से ऊंट और ऊंटनी खरीद लिए। किंतु कारीगर को अभी भी पुरानी ऊंटनी और उसके बच्चे से बहुत अधिक लगाव था । उसने ऊंटनी के बच्चे के गले में घंटी बांधी जिससे वह अलग ही पहचान में आ जाए। धीरे-धीरे ऊंटनी का बच्चा बड़ा हो गया और उसके गले में घंटी बंधी होने के कारण सबने उसका नाम घंटाधर रख दिया। गले में घंटी बंधी होने के कारण घंटाधर अपने आप को सभी लोगों से अलग समझने लगा और जब भी जानवर जंगल घास चरने के लिए जाते तो घंटाधर उन सबसे अलग ही रहता । घंटाघर को उसके साथियों ने कई बार समझाया कि झुण्ड से अलग मत रहा करो किंतु उसने किसी की बात नहीं मानी। उसी जंगल में एक शेर भी रहता था जिसकी नजर ऊंटों के झुण्ड पर थी किन्तु ऊंटों के झुण्ड में रहने के कारण शेर उन पर हमला नहीं कर पा रहा था । एक दिन जंगलऊंटों का झुण्ड घास चरकर आ रहा था किन्तु घंटाधर उन सबसे दूर अपनी मस्ती में घोय था । घंटाघर उनसे दूर होने के कारण बिछड़ गया और उसके घंटी की आवाज सुनकर शेर उसके नजदीक आ गया और उसे अकेला देखकर उसका शिकार कर लिया। इस प्रकार घंटाधर के घमंड के कारण उसका अंत हो गया ।
शिक्षा - घमण्डी मूर्ख ऊँट की पंचतन्त्र कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि कभी घमण्ड नहीं करना चाहिए |
18 गजराज और मूषकराज पंचतंत्र की कहानी -
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पंचतन्त्र की कहनियाँ |
एक समय की बात है जंगल में हाथियों का एक झुंड रहता था। हाथियों के झुण्ड का राजा राजराज नामक हाथी था । एक बार जंगल में भयानक अकाल पड़ा और हाथियों के पास खाने और पीने के लिए कुछ नहीं बचा । हाथियों ने सोचा अगर इस जंगल में रहेंगे तो कोई भी जिंदा नहीं बच पाएगा इसलिए किसी ऐसे स्थान की तलाश की जाए की जाए जहां आसानी से पानी और खाना मिल जाए। हाथियों के झुंड में एक बुजुर्ग हाथी भी था उसने सभी साथियों को सलाह दी कि वह उन्हें ऐसे स्थान पर ले जाएगा जहां पानी और घास की कोई कमी नहीं है। सभी हाथी बुजुर्ग हाथी के पीछे चल दिए । एक दिन के लंबे सफर के बाद हाथियों का झुंड एक विशाल तालाब के किनारे पहुंचा जहां सभी हाथियों ने छककर पानी पिया और स्नान किया। उसी तालाब के पास चूहों का एक समूह रहता था और समूह का राजा मूषकराज था । चूहों के घर हाथियों के रास्ते में आ जाने के कारण हाथियों के पैर तले कुचलने से कई चूहों की मौत हो गई और कई घायल हो गए । चूहों की ऐसी हालत देखकर मूषकराज को बहुत दुख हुआ। सभी चूहे मूषकराज के पास आए और उन्होंने विनती की कि किसी तरह हाथियों को यहां से वापस भेजा जाए अन्यथा हम में से कोई भी नहीं बचेगा। मूषकराज को समझ में नहीं आ रहा था कि इस समस्या से कैसे छुटकारा पाया जाए। तभी मूषकराज को हाथियों के राजा गजराज से मुलाकात करने का विचार आया। हाथियों का झुंड जब तालाब की तरफ आ रहा था तभी मूषकराज एक ऊंचे चट्टान पर बैठ गया और जैसे ही गजराज वहां से गुजरा मूषकराज ने उन्हें आवाज लगाई। गजराज ने इधर-उधर देखा किंतु उसे कोई दिखलाई नहीं दिया तभी गजराज की नजर एक छोटे से चूहे पर पड़ी। मूषकराज ने अपना परिचय देते हुए गजराज को सारी समस्या से अवगत कराया और बतलाया कि अगर हाथियों का झुंड यहां से थोड़ी आगे चला जाए तो उन्हें पर्याप्त पानी भी मिल जाएगा और चूहों की जान भी नहीं जाएगी। गजराज ने मूसकराज की बात मान ली । मूषकराज ने गजराज से कहा - जब भी आपको हमारी आवश्यकता पड़े हमें अवश्य याद करिये ।" गजराज को छोटे से मूषकराज की बात पर हंसी आ रही थी किंतु गजराज ने मूषक राज की बात मान ली और उनका झुंड वहां से कुछ दूरी पर चला गया। कुछ दिनों बाद बारिश का मौसम भी शुरू हो गया और झमाझम बारिश होने लगी । गजराज और उसका झुंड जंगल वापस चला गया। कुछ दिनों बाद एक शिकारी आया और उसने जाल फैलाकर गजराज को जाल में फंसा लिया। गजराज ने जाल से छूटने का बहुत प्रयत्न किया किंतु वह बाहर नहीं निकल पाया तभी गजराज को अपने मित्र मूषकराज की याद आई और उसने अपने एक साथी को तुरंत ही मूषकराज के पास संदेशा लेकर भेजा। गजराज का संदेशवाहक जैसे ही मूषकराज के पास पहुंचा मूषकराज तुरंत गजराज की सहायता करने के लिए उसकी पीठ पर बैठ कर उसके साथ चल दिया। जैसे ही वह गजराज के पास पहुंचे मूषकराज ने अपने नुकीले दांतों से जाल को काट दिया और गजराज जाल से मुक्त हो गया। गजराज ने मूषकराज को बहुत धन्यवाद दिया और मूषकराज को छोटा समझने की अपनी गलती पर पश्चाताप प्रकट किया। इस प्रकार मूषकराज और गजराज ने आपसी सहयोग से एक दूसरे की जान बचाई और धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती और मजबूत हो गई।
शिक्षा - गजराज और मूषकराज पंचतंत्र की कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि कभी भी किसी को छोटा नहीं समझाना चाहिए |
19 लालच का फल ( पंचतंत्र की कहानी)
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सम्पूर्ण पंचतन्त्र कहानियां |
बहुत समय पहले की बात है एक शिकारी था । एक दिन शिकारी शिकार करने के लिए जंगल गया । जंगल में उसे एक सुअर दिखलाई दिया । शिकारी ने सुअर का शिकार करने के लिए जैसे ही धनुष पर बाण चढ़ाया तभी उसे कुछ आवाज सुनाई दी । शिकारी ने देखा पास में ही एक हिरण खड़ा हुआ था। शिकारी ने सोचा मैं इस सुअर का शिकार तो बाद में भी कर सकता हूं अगर इस हिरण ने आवाज सुन ली तो यह भाग जाएगा । उसने तुरंत ही हिरण के ऊपर तीर चला दिया । तीर निशाने पर लगा और तीर लगते ही हिरण ववेहोश होकर गिर गया। हिरण का शिकार करने के बाद शिकारी सुअर के ऊपर तीर चला दिया। तीर सीधा सुअर को लगा तीर लगते ही सुअर अत्यधिक क्रोध में आ गया और अब वह मरने के पहले शिकारी को भी मार देना चाहता था। तीर लगने से खून से लथपथ सुअर शिकारी की तरफ पलटा और उसने शिकारी को एक जोरदार टक्कर मारी। टक्कर लगते ही शिकारी के प्राण पखेरू उड़ गए। कुछ ही देर में तीर से घायल सुअर भी मर गया। इस सारी घटना को एक पेड़ के नीचे से एक सांप देख रहा था । सुअर मरते समय सीधा उस सांप के ऊपर गिर गया और सुअर के वजन से दब कर वह संप भी मर गया । इस प्रकार एक ही समय में उस स्थान पर चार लाशें पड़ी हुई थी। कुछ ही देर में घूमता हुआ एक सियार उस स्थान पर आ गया और एक साथ 4 लाशों को देखकर उसकी आंखों में चमक आ गई। वह सोचने लगा कि अब उसे महीनों तक शिकार करने की जरुरत नहीं है । सियार की नजर पास में पड़े हुए धनुष पर पड़ी जो शिकारी द्वारा शिकार के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था। सियार उत्सुकता वश धनुष के पास पहुंचा और चमड़े से बनी डोर को देखकर उसे मुंह से चबाने का प्रयास करने लगा। कुछ ही देर में चमड़े की डोर टूट गई और धनुष का एक सिरा तेजी से सियार के माथे को भेजता हुआ उसके सिर से बाहर निकल गया। इस प्रकार अत्यधिक लोग के कारण शिकारी और सियार दोनों को ही अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
शिक्षा -पंचतंत्र की इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि कभी भी ज्यादा लालच नहीं करना चाहिए |
20 चार ब्राम्हणों की पंचतंत्र कहानी -
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पंचतन्त्र की कहानियाँ |
बहुत समय पहले की बात है एक ब्राह्मण थे उसके चार पुत्र थे। चार पुत्रों में से उसके तीन पुत्र ज्ञान प्राप्ति के लिए बहार गए हुए थे और शिक्षा प्राप्त करने के बाद वापस अपने गांव आ गए। जबकि चौथा पुत्र गांव में ही रहा और उसने किसी भी प्रकार की शिक्षा प्राप्त नहीं की । ब्राह्मण पुत्रों ने देखा कि गांव में उनके ज्ञान का कोई मूल्य नहीं है । उनका सोचना था ऐसा ज्ञान किस कार्य का जिससे धन की प्राप्ति ना हो सके । आखिर धन से ही दुनिया के हर सुख को भोगा जा सकता है। एक दिन चारों ब्राह्मण पुत्रों ने शहर जाने का निश्चय किया । रास्ते में उन्हें घना जंगल मिला । जंगल में उन्हें मृत शेरकी हड्डियां दिखलाई दी। शेर की हड्डियों को देखकर पढ़े-लिखे तीनों ब्राह्मण पुत्रों ने सोचा - " क्यों ना ! इस शेर को जीवित कर दिया जाए ? " किंतु चौथे ब्राह्मण पुत्र ने उन्हें ऐसा करने से मना किया और कहा कि अगर यह शेर जिन्दा हो गया तो अवश्य ही हम चारों को खा जाएगा। किंतु पढ़े-लिखे तीनों ब्राह्मण पुत्रों ने उसे अनपढ़ गवार और मूर्ख कहकर उसको तिरस्कृत कर दिया। तीनों ब्राह्मण पुत्रों का कहना था कि इस शेर को जिंदा कर हम अपनी विद्या का प्रदर्शन करेंगे। तभी उनमें से पहले ब्राह्मण पुत्र ने कुछ मंत्र पढ़ा और मंत्र के प्रभाव से शेर के हड्डियों पर मांस मांस आ गया । दूसरे ब्राह्मण पुत्र के मंत्र पढ़ने से मांस के ऊपर चमड़ी की परत चड गई । अब तीसरे ब्राह्मण पुत्र ने शेर में जान डालने के लिए जैसे ही मंत्र पढ़ना प्रारंभ किया चौथे ब्राह्मण पुत्र ने उसे रोका किन्तु वह नहीं माना | चौथा ब्राम्हण पुत्र पेड़ पर चड़ गया | तीनों ने उसकी बात नहीं मानी और वहीं रुक गए। तीसरे ब्राह्मण पुत्र ने मन्त्रों के प्रभाव से मृत शेर को जिंदा कर दिया। शेर जैसे ही जिंदा हुआ उसने पास खड़े तीनों ब्राह्मण पुत्रों को अपना शिकार बना दिया जबकि चौथा ब्राह्मण पुत्र अनपढ़ होते हुए भी अपनी बुद्धिमत्ता के कारण ऊंचे पेड़ पर चढ़ गया और उसने अपनी जान बचा ली।
शिक्षा - इस पंचतंत्र कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि शिक्षा के साथ-साथ व्यवहारिक ज्ञान का होना आवश्यक है।
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