चुहिया का स्वयंवर |
चुहिया का स्वयंवर | Chuhiya ka Swaymvar hindi kahani -
बहुत समय पहले की बात है एक महान तपस्वी थे, उनकी कोई संतान नहीं थी। एक बार वह स्नान करने के बाद हथेली में जल लेकर आचमन कर रहे थे तभी उनके हाथों में एक चुहिया आकर गिरी। ऋषि ने आसमान की तरफ देखा तो उन्हें एक बाज दिखलाई दिया वह समझ गए कि बाज चुहिया का शिकार करके ले जा रहा था और इसकी चोंच से यह चुहिया गिर गई।उन्होंने चुहिया के शरीर में जड़ी बूटियों का लेप लगाया कुछ ही दिनों में चुहिया स्वस्थ हो गई। तपस्वी के यहां कोई संतान नहीं थी । तपस्वी की पत्नी ने तपस्वी से कहा - " हमारे यहां कोई संतान नहीं है । इस चुहिया को हम अपनी संतान की तरह पाल लेते हैं। "
पत्नी की बात सुनकर ऋषि ने चुहिया को एक कन्या का रूप प्रदान कर दिया। ऋषि और ऋषि पत्नी ने उस कन्या का लालन पोषण बड़े ही प्रेम भाव से किया। जब कन्या विवाह योग्य हो गई तो ऋषि पत्नी ने ऋषि से कहा - " कन्या विवाह योग्य हो गई है इसके लिए कोई अच्छा सा वर ढूंढिए।"
ऋषि ने कहा - "अपनी कन्या के लिए सूर्य से उत्तम कोई वर नहीं हो सकता। "
इसके पश्चात उन्होंने कन्या से उसकी राय जाननी चाही । कन्या ने उत्तर दिया -" सूर्य तो बहुत गर्म है इसके साथ मैं कैसे विवाह कर सकती हूँ ।कृपया इससे अच्छा कोई वर ढूंढिए।"
ऋषि सूर्य के पास गए और सूर्य से पूछा कि वह उससे भी अच्छा कोई वर वर बतलाए। सूर्य ने उत्तर दिया- " मुझसे अच्छा और ज्यादा शक्तिशाली तो यह बादल है जो मुझे ढक देते हैं और मेरे प्रकाश को पृथ्वी तक नहीं जाने देते | बादल वर्षा कर लोगों को ठंडक देते हैं। "
ऋषि ने फिर अपनी पुत्री से पूछा कि क्या उसे वर के रूप में बादल स्वीकार है। कन्या ने उत्तर दिया - " बादल तो बहुत काले होते हैं और उनकी गर्जना से मुझे डर लगता है। कृपया इससे भी अच्छा वर देखें ।"
ऋषि ने बादल से पूछा अपने से भी अच्छा वर बतलाओ। बादल ने कहा - " मुझसे अधिक शक्तिशाली वायु है जो मुझे किसी भी दिशा में उड़ा कर ले जाने में सक्षम है। "
ऋषि ने फिर अपनी कन्या से उसकी इच्छा जानी चाहिए । कन्या ने उत्तर दिया - " पिताश्री यह तो बहुत ही चंचल है पल में यहां तो पल में वहां । इसके साथ मैं इतना नहीं घूम पाऊंगी । कृपया इससे अच्छा वर देखें। "
ऋषि ने वायु को बुलाकर उससे पूछा - " अपने से भी उत्तम वर बतलाओ । " वायु ने कहा - "ऋषि श्रेष्ठ मुझसे अधिक शक्तिशाली तो पर्वत है जो मेरे प्रचंड वेग मैं भी स्थिर रहता है और मेरा रास्ता रोक लेता है। "
ऋषि ने अपनी कन्या से उसकी स्वीकृति जानी चाही । कन्या ने कहा - " पिताश्री यह तो बहुत कठोर और स्थिर है । कृपया इससे भी श्रेष्ठ व ढूंढिए। "
ऋषि ने पर्वत से पूछा अपने से भी श्रेष्ठ वर बतलाओ तब पर्वत ने उत्तर दिया - " ऋषिवर मुझसे श्रेष्ठ और शक्तिशाली तो यह चूहा है जो मुझे भी तोड़ कर अपना बिल बना लेता है।"
ऋषि ने मूषकराज को बुलाया और अपनी पुत्री से उसकी इच्छा जानी चाही । ऋषि पुत्री ने मूषकराज को देखा और देखते ही उसे उसमें अपनापन महसूस हुआ। ऋषि कन्या मूषकराज पर मोहित हो गई और बोली - " मूषकराज वर के रूप में स्वीकार है। "
ऋषि ने अपने तपोबल से कन्या को फिर से चुहिया बना दिया और चूहे के साथ उसका विवाह करा दिया। इस प्रकार चुहिया को उसका योग्य वर मिल गया और वह उसके साथ सुख पूर्वक रहने लगी।
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