चिड़िया और मूर्ख बन्दर |
मूर्ख को उपदेश देने का नतीजा | Murkh Bandar aur chidiya ki Kahani -
एक जंगल में बंदरों का एक झुण्ड रहता था | ठंडी के दिनों में वर्फवारी हो रही थी सर्दी में कारण बन्दर ठिठुर रहे थे | सर्दी से उनका बुरा हाल हो रहा था | इसी मौसम में एक पेड़ पर अंगारों की तरह लाल रंग के फल लद रहे थे | कई बन्दर उन फलों को आग के फल समझ रहे थे और उन्हें फूंक मार-मार कर सुलगाने का प्रयास कर रहे थे |
उसी पेड़ पर एक चिड़िया रहती थी जो बंदरो की हरकतें देख कर हंस रही थी | चिड़िया ने कहा –“ अरे बंदरो तुम ये क्या कर रहे हो ? इन फलों को आग समझ कर उसे सुलगाने का प्रयास कर रहे हो | इन फलों से से तुम्हारी ठण्ड नहीं भागने वाली | अगर तुम्हें ठण्ड से बचना है तो गुफाओं में चले जाओ वहाँ ठंडी हवा नहीं पहुंचती |”
चिड़िया की बात एक बूढा बन्दर सुन रहा था | बूढ़ा बन्दर चिड़िया से बोला –“ अरे चिड़िया ! ये मूर्ख हैं इन्हें समझाने का कोई मतलब नहीं है | ये तुम्हारी बात तो मानेगें नहीं उल्टा तुम्हे ही नुक्सान पहुंचा देंगें |”
चिड़िया और बूढ़े बन्दर की बात झुण्ड के कुछ बंदरों को अच्छी नहीं लगी और उनमे से एक खूंखार बन्दर आया और चिड़िया के घोंसले को तोड़ कर तहस नहस कर दिया | चिड़िया के अंडे भी फूट गए और चिड़िया बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचा पाई | अन्डो के फूटने और घोंसले नष्ट होने से चिड़िया बहुत दुखी थी और उसने निश्चय किया की कभी भी मूर्खों को उपदेश नहीं देगी |
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