समुद्र और टिटहरी की कहानी |
टिटहरी, बाज और समुद्र की कहानी | Titahari aur Samudra panchtantra kahani -
बहुत समय पहले समुद्र के किनारे टिटहरी का जोड़ा रहता था | दोनों का दाम्पत्य जीवन बहुत हंसी-खुशी से कट रहा था | कुछ दिनों बाद टिटहरी गर्भवती हुई और जब अंडा देने का समय आया तो टिटहरी अपने पति से बोली –“ स्वामी ! जब हम दोनो थे तो हमें किसी बात का डर नहीं था | अब हमारे बच्चे होने वाले हैं | हमें किसी सुरक्षित स्थान की तलाश करनी चाहिए ताकि हमारे बच्चों को किसी प्रकार का कोई खतरा ना हो |”
टिटहरे ने कहा – “ हमें यहाँ किसी से कोई खतरा नहीं है | तुम बिना किसी चिंता के यहाँ रहो |”
टिटहरी बोला- “ जब समुद्र में ज्वार आता है तो आस-पास सब डूब जाता है | समुद्र की लहरें बड़े से बड़े जीव को अपने सांथ दूर तक ले जाती हैं |”
टिटहरे ने कहा – प्रिय ! तुम थोड़ी सी भी चिंता ना करो | समुद्र में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह हमारी संतान को कोई नुक्सान पहुंचा सके | वह मुझसे डरता है |”
समुद्र दोनों की बातें सुन रहा था वह सोचने लगा – “ इस छोटे से टिटहरे को कितना घमण्ड है ? इसे तो सबक सिखान पड़ेगा | फिर देखता हूँ ये क्या कर सकता है ?
कुछ दिनों बात टिटहरी ने अंडे दिये | एक दिन जब दोनों भोजन की तलाश में बाहर गए थे तभी समुद्र ने अपनी लहरों से उसके अन्डो को गायब कर दिया | जब दोनों लौट कर आये तो अपने अन्डो को गायब देख कर टिटहरी परेशान होकर रोने लगी और टिटहरे से क्रोधित होते हुए बोली – “ मैंने तो आपसे पहले ही कहा था अपने अन्डो को सुरक्षित जगह रख लेते हैं परन्तु आपके घमण्ड और अभिमान के कारण मेरे अन्डो को समुद्र बहा कर ले गया |”
टिटहरी की बात सुनकर टिटहरा बोला – “ प्रिय ! तुम डरो नहीं मै अभी अपनी चोंच से पानी पीकर इस समुद्र को सुखा देता हूँ |”
टिटहरे की इस प्रकार की मूर्खतापूर्ण बातों को सुनकर टिटहरी और अधिक नाराज हो गई और बोली – “ हमें अपनी शक्ति के अनुरूप व्यवहार करना चाहिए | जिस समुद्र को हजारो बड़ी-बड़ी नदियाँ अपने पानी से भरती हैं उसे तुम अपनी चोंच से सुखाना चाहते हो | ऐसा करके हम उसी तरह ख़त्म हो जायेंगे जैसे आग में पतंगा |”
टिटहरी की पंचतंत्र कहानी |
टिटहरा अपनी चोंच से समुद्र को सुखा देने की बात पर अड़ा रहा अंत में टिटहरी के मुख से खरी खोटी सुनने के बाद टिटहरा इस बात पर तैयार हो गया कि दूसरे पक्षियों के पास जाकर उनसे मदद मांगते हैं | शायद कोई समाधान निकल आये |
टिटहरी और टिटहरे ने सारस, बगुला, कबूतर मोर आदि पक्षियों को बुलाया और अपनी दुःख भरी कहानी बतलाई | सभी पक्षियों ने कहा –“ हम तो समुद्र के सामने अशक्त हैं परन्तु हो सकता है गरुड़ हमारी कुछ सहायता कर दे | इतना कहकर सभी गरुड़ के पास पहुंचे और उसे अपना दुखड़ा सुनाया | सभी ने एक स्वर में कहा – “ आपके होते हुए समुद्र हमें परेशान कर रहा है आज उसने टिटहरी के अंडे चुराए हैं कल किसी दूसरे पक्षी को परेशान करेगा ऐसे तो पक्षी जाती ही समाप्त हो जायेगी |
पक्षियों की बात सुनकर गरुड़ ने उनकी सहायता करने का निर्णय लिया | गरुड़ भगवान विष्णु की सवारी है | भवान विष्णु को अमरावती जाना था तो उसे बुलाने भगवान विष्णु का दूत आया | गरुड़ ने सोचा कि इस समस्या का हल तो भवगान विष्णु ही निकाल सकते हैं | गरुड़ ने भगवान के पास जाकर पूरी व्यथा सुनाई और बोला – “ भगवन् ! इस तरह तो हम पक्षियों का अस्तित्व ही मिट जायेगा | अब आप ही हमारी मदद कर सकते हैं |”
भगवान विष्णु बोले – “ तुम्हारा और पक्षियों का क्रोध युक्तिपूर्ण है | समुद्र को इस तरह टिटहरी के अंडे नहीं चुराने थे |” भगवान विष्णु ने गरुड़ और अन्य पक्षियों की मदद का भरोसा दिया और गरुड़ पर सवार होकर समुद्र के पास जा पहुंचे | विष्णु जी ने अपने धनुष पर आग्नेय वाण चढ़ाया और समुद्र से बोले – “ दुष्ट | तूने इस नन्ही सी टिटहरी के अंडे चुराकर अच्छा नहीं किया | अभी इसे अंडे वापस कर नहीं तो मै तुझे पल भर में सुखा दूंगा |”
समुद्र ने भगवान विष्णु के डर से टिटहरी के अंडे उसे वापस कर दिए | अन्डे पाकर टिटहरी और टिटहरा बहुत खुश हुए और भगवान विष्णु को धन्यवाद कर उन्हें बारम्बार नमन् किया |
शिक्षा – "कोई कितना भी बड़ा हो या छोटा उसे घमण्ड नहीं करना चाहिए |”
समुद्र और टिटहरी की पंचतन्त्र कहानी |
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