हंस और उल्लू की कहानी |
हंस और उल्लू की कहानी | Jhoothi shan ka parinam -
बहुत पुरानी बात है एक ऊंची पहाड़ी पर विशाल किला था | किले के अन्दर एक देवदार का वृक्ष था जिस पर एक उल्लू रहा करता था | उल्लू प्रतिदिन भोजन की तलाश में पहाड़ी से नीचे घास के मैदान में आता था। घास के मैदान के पास ही एक बड़ा सा तालाब था उस तालाब में बहुत से हंस रहा करते थे। उल्लू जब भी हंसों को देखता तो हंसो के सुंदर सफेद रंग, लम्बी गर्दन और बड़ी-बड़ी आंखों को देखकर उसमें भी हंसोके जैसा बनाने की इच्छा होती थी | उल्लू जनता था वह हंस जैसा नहीं बन सकता इसीलिए वह हंसो से दोस्ती करना चाहता था ।
हंसो से दोस्ती करने के लिए एक दिन उल्लू तालाब के पास जाकर बैठ गया | तभी वहां एक हंस आया और उल्लू ने उसे नमस्कार करते हुए पानी पीने की आज्ञा मांगी | हंस ने विनम्रता पूर्वक उल्लू को पानी पीने दिया | बातों ही बातों में दोनों में दोस्ती हो गई | हंस ने बाद में बताया कि वह हंसों का राजा हंसराज है। हंसराज जब भी मौका मिलता उल्लू को अपने घर ले जाता और अच्छे-अच्छे पकवान खिलाता था।
उल्लू हंसराज से बहुत अधिक प्रभावित था | अब उल्लू को डर लगने लगा कि कहीं हंसराज को उसकी हकीकत पता चल गई कि वह तो साधारण सा उल्लू है तो हंसराज उससे दोस्ती तोड़ देगा | इसलिए उल्लू ने अपनी दोस्ती को बचाने के लिए हंसराज से झूठ बोला कि वह उल्लुओं का राजा उलूक राज है और ऊंची पहाड़ी जो किला है वह उसी का है और उस किले में उसकी फौज रहती है। उल्लू ने किले में होने वाली सैनिकों की गतिविधियों को अच्छी तरह समझ लिया और एक दिन हंसराज के पास आकर उसे अपने महल में चलने का निमंत्रण दिया |
उल्लू ने कहा- " मित्र ! हंसराज मैं अक्सर आपका आतिथ्य स्वीकार करता हूं परन्तु आप आज तक मेरे महल नहीं गए | अब आपको भी मेरे यहां चलकर मेरा आतिथ्य स्वीकार करना पड़ेगा।"
शुरू में तो हंसराज ने कुछ बहाना बनाया लेकिन उल्लू की बातों के आगे उसे झुकना पड़ा और वो उल्लू के साथ जाने के लिए तैयार हो गया। दूसरे दिन उल्लू हंसराज को अपने साथ ले गया और देवदार के वृक्ष पर जाकर दोनों बैठ गए | उस समय सैनिकों की परेड शुरू होने वाली थी | कुछ ही देर में सैनिकों की परेड हुई और झंडे को सलामी दी गई | हंसराज को लगा सलामी उलूकराज को दी जा रही है। उसी समय उल्लू बोला- " मित्र ! यह सलामी तुम्हारे लिए दी गई है और जब तक तुम यहाँ रहोगे तब तक प्रतिदिन इसी तरह सलामी होगी।"
हंसो से दोस्ती करने के लिए एक दिन उल्लू तालाब के पास जाकर बैठ गया | तभी वहां एक हंस आया और उल्लू ने उसे नमस्कार करते हुए पानी पीने की आज्ञा मांगी | हंस ने विनम्रता पूर्वक उल्लू को पानी पीने दिया | बातों ही बातों में दोनों में दोस्ती हो गई | हंस ने बाद में बताया कि वह हंसों का राजा हंसराज है। हंसराज जब भी मौका मिलता उल्लू को अपने घर ले जाता और अच्छे-अच्छे पकवान खिलाता था।
उल्लू हंसराज से बहुत अधिक प्रभावित था | अब उल्लू को डर लगने लगा कि कहीं हंसराज को उसकी हकीकत पता चल गई कि वह तो साधारण सा उल्लू है तो हंसराज उससे दोस्ती तोड़ देगा | इसलिए उल्लू ने अपनी दोस्ती को बचाने के लिए हंसराज से झूठ बोला कि वह उल्लुओं का राजा उलूक राज है और ऊंची पहाड़ी जो किला है वह उसी का है और उस किले में उसकी फौज रहती है। उल्लू ने किले में होने वाली सैनिकों की गतिविधियों को अच्छी तरह समझ लिया और एक दिन हंसराज के पास आकर उसे अपने महल में चलने का निमंत्रण दिया |
हंस और उल्लू की कहानी |
शुरू में तो हंसराज ने कुछ बहाना बनाया लेकिन उल्लू की बातों के आगे उसे झुकना पड़ा और वो उल्लू के साथ जाने के लिए तैयार हो गया। दूसरे दिन उल्लू हंसराज को अपने साथ ले गया और देवदार के वृक्ष पर जाकर दोनों बैठ गए | उस समय सैनिकों की परेड शुरू होने वाली थी | कुछ ही देर में सैनिकों की परेड हुई और झंडे को सलामी दी गई | हंसराज को लगा सलामी उलूकराज को दी जा रही है। उसी समय उल्लू बोला- " मित्र ! यह सलामी तुम्हारे लिए दी गई है और जब तक तुम यहाँ रहोगे तब तक प्रतिदिन इसी तरह सलामी होगी।"
दूसरे दिन किसी कारण बस सैनिकों को किला छोड़ कर दूसरी जगह जाने का आदेश प्राप्त हुआ | प्रातः सभी सैनिक अपना सामान लेकर किले से जाने लगे।
तभी हंसराज ने उल्लू से कहा - "मित्र उलूकराज ! देखो आपके सैनिक बगैर आपकी आज्ञा के किला छोड़ कर जा रहे हैं ।" यह देख कर उलूक राज असमंजस में पड़ गया और उसे कुछ समझ नहीं आया और अपने स्वभाव वश घू-घू की आवाज निकालने लगा। उल्लू की घू-घू की आवाज सुनकर सैनिकों ने इसे अपशगुन जानकर किले से जाना स्थगित कर दिया।
सैनिकों के रूक जाने पर उल्लू बोला - " देखो मित्र ! मेरी आज्ञा से सैनिक रुक गए हैं और जब तक आप रहोगे तब तक यह कहीं नहीं जाएंगे। " दूसरे दिन प्रातः सैनिक फिर से जाने के लिए जैसे ही तैयार हुए उल्लू फिर आवाज निकालने लगा | उल्लू की आवाज सुनकर सेनापति को क्रोध आया और उसने धनुष पर तीर चढ़ाते हुए उल्लू को निशाना लगाकर तीर चला दिया | लेकिन वह तीर उल्लू को ना लग कर हंसराज को लग गया और हंसराज ने वहीँ अपने प्राण त्याग दिए।
हंसराज की मृत्यु से उल्लू बहुत दुखी हुआ और वही रो-रोकर विलाप करते हुए बोला - " मेरे झूठे दिखावे ने मेरे परम मित्र हंसराज की जान ले ली। " जब उल्लू रो रहा था तो वह बेसुध सा हो गया और उसने अपने आसपास ध्यान नहीं दिया। दूर से एक गीदड़ यह सब देख रहा था और इन परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए उसने उल्लू पर झपट्टा मारकर उसका भी काम तमाम कर दिया।
तभी हंसराज ने उल्लू से कहा - "मित्र उलूकराज ! देखो आपके सैनिक बगैर आपकी आज्ञा के किला छोड़ कर जा रहे हैं ।" यह देख कर उलूक राज असमंजस में पड़ गया और उसे कुछ समझ नहीं आया और अपने स्वभाव वश घू-घू की आवाज निकालने लगा। उल्लू की घू-घू की आवाज सुनकर सैनिकों ने इसे अपशगुन जानकर किले से जाना स्थगित कर दिया।
सैनिकों के रूक जाने पर उल्लू बोला - " देखो मित्र ! मेरी आज्ञा से सैनिक रुक गए हैं और जब तक आप रहोगे तब तक यह कहीं नहीं जाएंगे। " दूसरे दिन प्रातः सैनिक फिर से जाने के लिए जैसे ही तैयार हुए उल्लू फिर आवाज निकालने लगा | उल्लू की आवाज सुनकर सेनापति को क्रोध आया और उसने धनुष पर तीर चढ़ाते हुए उल्लू को निशाना लगाकर तीर चला दिया | लेकिन वह तीर उल्लू को ना लग कर हंसराज को लग गया और हंसराज ने वहीँ अपने प्राण त्याग दिए।
हंसराज की मृत्यु से उल्लू बहुत दुखी हुआ और वही रो-रोकर विलाप करते हुए बोला - " मेरे झूठे दिखावे ने मेरे परम मित्र हंसराज की जान ले ली। " जब उल्लू रो रहा था तो वह बेसुध सा हो गया और उसने अपने आसपास ध्यान नहीं दिया। दूर से एक गीदड़ यह सब देख रहा था और इन परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए उसने उल्लू पर झपट्टा मारकर उसका भी काम तमाम कर दिया।
झूठी शान का परिणाम |
शिक्षा - उल्लू और हंस की कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि कभी झूठी शान का दिखावा नहीं करना चाहिए।
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