Tantya Bhil |
टंट्या
भील जीवन परिचय | Tantya Bhil Jivni Aur Itihas -
टंट्या भील का वास्तविक नाम तांतिया भील था लोग प्यार से उन्हें तंट्या मामा भी कहते थे | उनका संबंध मध्य प्रदेश के भील आदिवासी समाज से था | टंट्या भील ने अंग्रजों द्वरा किये जा रहे अत्याचारों के विरुद्ध 12 वर्षों तक संघर्ष किया | स्थानीय लोग उन्हें जन नायक मानते है वहीं अंग्रेजी हुकूमत अन्य क्रांतिकारियों की तरह उन्हें एक विद्रोही और लुटेरा मानती थी | वे अंग्रजी हुकूमत के सरकारी खजाने लूटते थे और लूटे हुए सामान को जरुरतमंदो और गरीबों में बाँट देते थे | अपने इन्ही गुणों केर कारण उन्हें इंडियन रॉबिनहुड भी कहा जाता है | टंट्या भील ने अंग्रेजो के खिलाफ जीवन भर संघर्ष किया | टंट्या भील से संबंधित कई दन्त-कथायें आज भी कही सुनी जाती हैं | उन्होंने अपने दौर में गरीब और शोषित आदिवासियों के मन में अंग्रेजी शासन के खिलाफ ज्योत जलाई |
टंट्या भील का जन्म और बचपन –
टंट्या भील का जन्म खण्डवा जिला जिसे पूर्वी निमाड़ भी कहा जाता है की पंधाना तहसील के बडदा गाँव में 1842 में भील आदिवासी परिवार में हुआ था | इनके पिता का नाम भाऊ सिंह भील था | टंट्या शब्द का शाब्दिक अर्थ झगड़ालू होता है | अन्य भील बच्चों की तरह टंट्या बचपन से ही धनुष-वाण चलाना सीख गए थे | उनका बचपन जंगल और गाँव में ही बीता | टंट्या भील दुबले-पतले और साधारण कद काठी के इंसान थे | जब वो युवा हुए तो उनकी नेतृत्व छमता उभरकर सामने आने लगी उन्होंने लोगों को संगठित किया और आदिवासियों के अद्वितीय नायक के रूप में सामने आये |
टंट्या भील का विद्रोही बनना -
टंट्या भील 1857 की क्रांति और 1857 की क्रांति के नायकों से बहुत अधिक प्रभावित थे | 1857 के बाद आम जनता पर अंग्रजों के अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गए | टंट्या का परिवार और आम आदिवासी भी इससे अछूते नहीं थे | अंग्रेजों के अत्याचारों से तंग आकर टंट्या भील ने संघर्ष का रास्ता चुना | संघर्ष के इस पथ पर स्थानीय लोगों ने भी उनका सांथ दिया | वे अपने संथियों के सांथ मिलकर अंग्रेजों और अंग्रेजों के सहयोगियों को लूटते थे और जो भी धन मिलता उसे गरीब और असहाय लोगों में बाँट देते थे | इन कार्यों से आम आदिवासियों से उन्हें बहुत स्नेह और प्यार मिला | 1874 में पहली बार उन्हें चोरी के मामले में गिरफ्तार किया गया था | 1878 में उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया | इसके बाद टंट्या ने बड़े स्थर पर अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष शुरू कर दिया उन्होंने जंगल में रहकर गुरिल्ला युद्ध नीति अपनाई | इससे अंग्रेजों को बहुत अधिक नुकसान हो रहा था वे लगातार टंट्या भील को पकड़ने का प्रयास कर रहे थे परन्तु टंट्या उनके हाँथ नहीं आये |
टंट्या भील की मृत्यु –
टंट्या भील को उनके ही रिश्तेदार के विश्वासघात के कारण पकड़ लिया गया | उन्हें पकड़ कर इंदौर लाया गया | इंदौर में उन्हें सेंट्रल इंडिया एजेंसी जैन में रखा गया परन्तु यहाँ लोगों के विरोध देखते हुए उन्हें कडी सुरक्षा में जबलपुर लाया गया | यहाँ उन्हें बहुत प्रताड़ित किया गया | 19 अक्टूबर 1889 को उन्हें फंसी की सजा सुनाई गई और 4 दिसंबर 1889 को उन्हें फांसी दे दी गई | अंग्रेजी हुकूमत कोडर था की कहीं भील बिद्रोह ना भड़क जाए कहा जाता है कि इसी दर के कारण उनके शव को इंदौर के पातालपानी रेल्वे स्टेशन के पास फेंक दिया गया था | वर्तमान में उसी स्थान के पास उनकी समाधि है |
टंट्या भील के उपनाम –
टंट्या भील का वास्तविक नाम तांतिया भील था आम लोग उनसे इतना अपनापन महसूस करते थे कि प्यार से उन्हें मामा कहते थे धीरे –धीरे यह शब्द भील समुदाय के लिए भी प्रचलित हो गया | टंट्या भील की गिरफ्तारी के बाद न्यूयार्क टाइम्स ने उन्हें 10 नवम्बर के अंक में “ भारत का रॉबिनहुड “ कहा | भील समुदाय देवता तुल्य टंट्या भील मानकर उनकी पूजा करता है |
महापुरुष जीवनी -
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टंट्या भील से संबंधित पुस्तक (Books ) ऑनलाइन उपलब्ध है जिसकी लिंक नीचे दी गई है -
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