Bappa Rawal History In Hindi |
बप्पा रावल का इतिहास और जीवनी | Bappa Rawal History in Hindi -
बाप्पा रावल भारत के उन महान शासकों में से एक हैं जिन्होंने भारत पर होने वाले अरबों के मुस्लिम आक्रान्ताओं के आक्रमण को ना सिर्फ सफलता पूर्वक रोका अपितु अरबों को कई बार युद्ध में हराया और अरब तक खदेड़ कर आये | बप्पा रावल और उनके जैसे योद्धाओं के कारण भारत आने वाले 400 वर्षों तक अरबों के आक्रमण से सुरक्षित रहा | इतिहासकारों का मानना है कि वप्पा रावल को बापा भी कहा जाता था , इनका वास्तविक नाम कालाभोज (कालभोजादित्य) था | ये गुहिल राजपूत वंश में जन्मे थे और राणा सांगा और महाराणा प्रताप जैसे महान राजाओं के पूर्वज थे | पकिस्तान के रावलपिंडी शहर का नाम इन्ही के नाम पर पड़ा | बप्पा ने मेवाड़ में भगवान शिव के एकलिंग जी मंदिर का निर्माण करवाया |बप्पा रावल का जन्म और बचपन | Bappa Rawal ka Janam -
बप्पा रावल के जन्म के बारे में इतिहासकारों में मतभेद हैं | बप्पा रावल के पिता नागादित्य थे कुछ इतिहासकारों के अनुसार इनके पिता महेंद्र द्वितीय थे जो राजस्थान के ईडर के शासक थे | बप्पा रावल का जन्म वर्ष 713 ईसवीं में गुहेल/गहलोत राजपूत वंश में हुआ | गुहिल वंश की स्थापना 566 ईसवी में गुहिल (गुहिलादित्य) ने की थी | गुहिल को सूर्यवंशी माना जाता है , ये स्वयं को सूर्यवंशी भगवान राम के पुत्र कुश के वंशल बतलाते हैं | जब बप्पा रावल 3 वर्ष के थे तब इनके पिता की हत्या कर दी गई थी | इनकी माताजी ने इन्हें अपने कुल पुरोहित के पास भिजवा दिया | ये बचपन में ब्राम्हणों की गाय चराने जाते थे | जिन गायों को ये चराने जाते थे उनमें से एक गाय जब लौटकर आती थी तब उसका दूध ख़त्म हो जाता था एक दिन बप्पा ने छुपकर देखा तो गाय एक स्थान पर खड़ी थी और उसके थन से दूध की धार निकल रही थी जो नीचे एक शिवलिंग के ऊपर गिर रही थी | बप्पा को यही हारित ऋषि के दर्शन हुए और उन्होंने बाद में इसी स्थान पर भगवान शिव का एकलिंगजी मंदिर बनवाया | हारित ऋषि की कृपा से बाद में राजा बने | गुहिल वंश में कई प्रतापी राजा हुए परन्तु बप्पा रावल ने इस वंश को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया इसी कारण इन्हें गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक भी कहा जाता है | इसी वंश से आगे चलकर सिसोदिया वंश निकला जिसमें राणा कुम्भा , राणा सांगा और महराणा प्रताप जैसे महान वीर हुए | इनका बचपन का अधिकांश समय मेवाड़ के नागदा गाँव में बीता |बप्पा रावल और हारित ऋषि | Bappa Rawal and Harit Rishi -
बप्पा रावल बचपन से ही हारीत ऋषि से बहुत अधिक प्रभावित और उनके अनन्य भक्त थे | बप्पा के व्यक्तित्व और प्रतिभा से हारित ऋषि बहुत अधिक प्रभावित थे और उन्होंने भी बप्पा की हर तरह से मदद भी की थी | बप्पा रावल का वास्तविक नाम कालभोज या मालभोज था इन्हें बप्पा की उपाधि हारित ऋषि ने ही दी थी | इस समय तक भारत पर मुस्लिम आक्रमणकारियों के हमले होने लगे थे और हारित ऋषि ने बप्पा में वो प्रतिभा देखी जो सनातन धर्म की रक्षा कर सके और इन आक्रमणों को विफल कर सके | इतिहासकार नैणसी के अनुसार हारित ऋषि ने बप्पा को ऐसे स्थान के बारे में बतलाया जहाँ से उन्हें 15 करोड़ मूल्य की स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त हुईं | इसी खजाने से प्राप्त धन से बप्पा ने अपनी सेना को संगठित किया | हारित ऋषि ने अपने अंतिम समय में बप्पा को आशीर्वाद दिया कि मेवाड़ पर सदैव उनके वंशजों का ही अधिकार रहेगा और हारीत ऋषि का वरदान सच भी साबित हुआ 1947 ईसवी तक मेवाड़ पर सिसोदिया वंश का ही अधिकार रहा |बप्पा रावल का शासनकाल –
बप्पा रावल के गद्दी पर बैठने के बारे में भी इतिहासकारों में मतभेद है किन्तु अधिकांश इतिहासकारों के अनुसार वप्पा रावल संवत् 780 (723 ईसवी) में गद्दी पर बैठे | इस समय चित्तौड पर मोरी वंश का अधिकार था | वप्पा रावल ने हारीत ऋषि के आशीर्वाद से 734 ईसवी में चित्तौड के राजा मानमोरी को हराकर चित्तौड पर अधिकार कर लिया | राणा कुम्भा के समय रचित एकलिंग महात्म में किसी प्राचीन लेख के आधार पर बापा का समय संवत् 810 (753 ईसवी) माना गया है जबकि दूसरे एकलिंग महात्म में इसे बप्पा रावल के राजत्याग का समय माना गया है | इस आधार पर कहा जा सकता है कि बापा का शासनकाल का समय संवत् 780 (723 ईसवी) से संवत् 810 ( 753 ईसवी ) तक लगभग 30 वर्ष रहा | 753 ईसवी में राज्य त्याग के समय उनकी आयु लगभग 39 वर्ष रही होगी | राज्य त्याग के पश्चात बप्पा रावल ने सनातन परंपरा के अनुसार सन्यास ग्रहण कर लिया और भगवान शिव की भक्ति में लीन हो गए |बप्पा रावल ने अपने शासन काल में कई बार अरब के मुस्लिम आक्रमणकारियों के आक्रमण को ना सिर्फ रोका बल्कि उन्हें युद्ध में हराया भी | बप्पा एक कुशल शासक के सांथ-सांथ प्रजारक्षक , देशरक्षक और धर्मरक्षक के गुण भी थे |
बप्पा रावल के हांथो अरबों की पराजय –
712 ईसवी में मुस्लिम आक्रमणकारी मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध के राजा दाहिर को हरा कर सिंध पर कब्जा कर लिया और हजारो लोगों का कत्लेआम किया और तलबार के दम पर लोगों का धर्म परिवर्तन करवाया | अरबों ने कई छोटे-छोटे देशी राजाओं को परास्त किया और इनकी सेनाये गुजरात ,राजस्थान के कई हिस्सों में फ़ैल गईं | इन आक्रमण कारियों का सफलता पूर्वक सामना भारत के कुछ महान योद्धाओं ने किया जिनमे प्रतिहार नरेश नागभट्ट और मेवाड़ के बप्पा रावल प्रमुख और दक्षिण में चन्द्रगुप्त द्वितीय थे | बापा रावल ने अरबों से हारे हुए राजाओं और कई छोटी-छोटी रियासतों को संगठित किया और प्रतिहार नरेश नागभट्ट जैसे प्रतापी राजाओं के सांथ मिलकर एक विशाल हिन्दू सेना का गठन किया | बप्पा रावल ने अपनी प्रशासनिक व्यवस्था को मजबूत किया और आस-पास के सभी राजाओं के सांथ मिलकर आपसी सहयोग स्थापित किया | इस संयुक्त सेना ने ना केवल अरबों को आगे बढ़ने से रोका अपितु उन्हें युद्ध में हराकर ईरान और खुरासान तक पीछे धकेल दिया | बप्पा रावल और संयुक्त हिन्दू सेनाओं ने अरबी आक्रमणकारी जुनैद को 725 ईसवी में युद्ध में हराया और ईरान के हज्जाज द्वारा भेजी सेना को बुरी तरह पराजित किया | बप्पा रावल सिंध पर कब्ज़ा करके मुस्लिम शासन को ख़त्म किया | गजनी के शासक सलीम को हारकर गजनी पर अधिकार कर लिया |बप्पा रावल ने अरबी लुटेरों पर निगरानी रखने के लिए गजनी में सैन्य चौकी बनवाई | माना जाता है की बापा का इतना खौफ था की बप्पा के प्रकोप से बचने के लिए कई मुस्लिम राजाओं ने अपनी लड़कियों का विवाह बप्पा रावल से करवाया | आरबों पर बापा की विजय के काई किस्से आज भी राजस्थान के लोक गीतों में गाये जाते हैं |बप्पा रावल की उनकी शिव भक्ति –
बप्पा रावल शिव जी के परम भक्त थे | वे वचपन से ही भगवान शिव के रूप एकलिंग जी की उपासना करते थे | बचपन में गाय चराते समय उन्हें भगवान एकलिंग जी की प्रतिमा मिली | बाद में उन्होंने उदयपुर के निकट कैलाशपुरी में भगवान एकलिंग जी का भव्य मंदिर बनवाया | बप्पा एकलिंग जी को ही मेवाड़ का राजा मानते थे और स्वयं को उनका दीवान मानकर राज्य का संचालन करते थे | वे जब भी बाहर जाते एकलिंग जी से अनुमति लेकर जाते थे इस परम्परा को “ आसकां लेना “ कहा जाता था | मेवाड़ के भावी शासकों ने बप्पा रावल की परम्परा को पूरी श्रद्धा से निभाया |बप्पा रावल के सिक्के –
बप्पा रावल मेवाड़ के पहले शासक थे जिन्होंने सोने के सिक्के चलवाए | इनके द्वरा चलवाए गए सिक्कों में शिवलिंग और शिवलिंग की तरफ मुख करके बैठे हुए नंदी की आकृति है | इसी सिक्के में शिवलिंग को प्रणाम करते हुए पुरुष की भी आकृति है इतिहासकारों के अनुसार संभवतः यह पुरुष बप्पा रावल हैं | इस सिक्के में सूर्य , छत्र , गाय और गाय के दूध पीते बछड़े की भी आकृति है | इन सिक्कों का तोल 115 ग्रेन अर्थात 65 रत्ती है |बप्पा रावल से संबंधित कुछ रोचक तथ्य –
बप्पा रावल से संबंधित बहुत से रोचक तथ्य प्रचलित हैं जिनमें अधिकाँश बातें उनकी कद-काठी को लेकर हैं | कहा जाता है कि बप्पा रावल 35 हाँथ की धोती और 16 हाँथ का दुपट्टा पहनते थे उनकी तलवार का बजन 32 मन था | वे एक बार में एक ही झटके से 2 भैंसों की बलि दे देते थे | बप्पा रावल अपने भोजन में 4 बकरे खाते थे | बप्पा रावल की सेना में 12 लाख 72 हजार सैनिक थे |Bappa Rawal Jivni aur Itihas |
रावलपिंडी की स्थापना –
बप्पा ने मेवाड़ का शासन सिंध और गजनी तक पहुंचा दिया था | यह क्षेत्र बहुत दूरस्त था इसीलिए अरबी लुटेरों पर निगरानी रखने के लिए गजनी में एक सैन्य चौकी की स्थापना की और इसे रावलपिंडी नाम दिया | वर्तमान में रावलपिंडी पकिस्तान के पंजाब प्रान्त का एक प्रमुख शहर है |बप्पा रावल की पत्नी | Bappa Rawal's Wife -
बप्पा रावल की कुल 100 रानियाँ थीं जिनमें से 35 मुस्लिम शासकों की पुत्रियाँ थी | बप्पा रावल के डर के कारण मुस्लिम शासकों ने उनसे वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये | वर्तमान भारत की सीमाओं के अनुसार उन्होंने करीब 18 अन्तराष्ट्रीय विवाह किये थे |बप्पा रावल के पुत्र | Bappa Rawal's Sons -
बप्पा रावल के कई पुत्र थे जिनमे सुमेर सिंह बप्पा रावल के उत्तराधिकारी बने | सुमेर सिंह का शासन काल 753 ईसवी से 773 ईसवी रहा | सुमेर सिंह के बाद मेवाड़ के राजगद्दी पर सुमेर सिंह के पुत्र रतन सिंह बैठे |बप्पा रावल के वंशावली Bappa Rawal ki vanshavali -
वप्पा रावल गुहेल/गहलोत राजपूत राजवंश में जन्में थे | गुहेल/गहलोत वंश के संस्थापक गुहिलादित्य थे परन्तु इस वंश का वास्तविक संस्थापक बप्पा रावल को ही माना जाता है | इस वंश को बप्पा रावल के बाद से मेवाड़ वंश भी कहा जाता है | मेवाड़ राजवंश को दुनिया का सबसे लम्बा जीवित राजवंश माना गया है | बप्पा रावल को कई वंशों का संस्थापक भी कहा जाता है | “ नैणसी री ख्यात “ में गुहिलों की 24 साखाओं का वर्णन मिलता है | वप्पा रावल के बाद उनके पुत्र सुमेर सिंह मेवाड़ के शासक बने, सुमेर सिंह के बाद उनके पुत्र रतन सिंह शासक बने | बप्पा रावल के बाद मेवाड़ के 26 वें शासक रणसिंह हुये जिन्होंने 1158 से 1168 तक शासन किया | इनके दो पुत्र क्षेम सिंह और राहप थे | क्षेम सिंह अगले शासक हुए और इन्होने रावल शाखा चलाई जबकि इनके दूसरे पुत्र राहप सिसोदा गाँव चले गए और सिसोदा में रहने के कारण इनके वंशज सिसोदिया कहलाये | क्षेम सिंह के वंश में आगे 1273 से 1301 के बीच समर सिंह हुए इनके दो पुत्र रतन सिंह और कुम्भकरण हुए | रतन सिंह मेवाड़ के शासक बने और कुम्भकरण नेपाल चले गए | कहा जाता है कि नेपाल के राजा कुम्भकरण के वंशज हैं | वहीँ मेवाड़ के शासक रतन सिंह को अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 में हराकर मेवाड़ पर कब्ज़ा कर लिया | मेवाड़ वंश की खोई प्रतिष्ठा को राहप के वंशज हम्मीर सिंह ने पुनः लौटाया और मेवाड़ पर फिर से कब्ज़ा कर लिया | हम्मीर सिंह ने महाराणा के उपाधि धारण की और इसके बाद से इनके सभी वंशज महाराणा कहलाने लगे | महाराणा हमीर सिंह के बाद गुहेलवंश की सिसोदिया साखा मेवाड़ की शासक बनी और इस सखा में राणा कुम्भा, राणा सांगा, राणा उदयसिंग और महाराणा प्रताप जैसे शूर-वीरों ने जन्म लिया और अपने वंश के वैभवशाली इतिहास को आगे बढाया | भारत की आजादी तक मेवाड़ पर इसी राजवंश का अधिकार रहा और 1947 में राणा भूपालसिंह ने अपने राज्य को भारत संघ में विलय कर दिया |बप्पा रावल का निधन और समाधि -
कुछ इतिहाकारों के अनुसार बप्पा रावल का निधन 753 ईसवी माना है जबकि कुछ लोगों के अनुसार इनका निधन 810 ईसवी में 97 साल की उम्र में हुआ | सभी इतिहाकारों के अनुसार इनका देहांत नागदा में हुआ और जिस स्थान पर इनका अंतिम संस्कार हुआ वहां वप्पा रावल की मंदिरनुमा समाधि बनी है जिसे बप्पा रावल की छत्री कहा जाता है | बप्पा रावल की वीरता और शौर्य के लोक कथाएं और लोकगीत आज भी राजस्थान में गए जाते हैं |
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बप्पा रावल से जुड़े कुछ महत्तवपूर्ण प्रश्न/उत्तर -
FAQ-
प्रश्न - मेवाड़ के गुहिल वंश के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर - गुहेल/गहलोत वंश की स्थापना 566 ईसवी में गुहिल (गुहिलादित्य) ने की थी | जबकि मेवाड़ के गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक वप्पा रावल को माना जाता है क्यूंकि इन्होने गुहिल वंश को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया | इस वंश को बप्पा रावल के बाद से मेवाड़ वंश भी कहा जाता है | इसी वंश की एक शाखा सिसोदिया थी जिसमें महारण सांगा, राणा कुम्भा और महाराणा प्रताप जैसे वीर हुए |
प्रश्न - बप्पा रावल का जन्म कब हुआ ?
उत्तर - बप्पा रावल का जन्म 713 ईसवी में हुआ था |
प्रश्न - बप्पा रावल का सम्बन्ध किस वंश से था ?
उत्तर – बप्पा रावल का जन्म गुहिल वंश में हुआ गुहिल वंश को गहलोत भी कहा जाता है | गुहिल वंश को भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज माना जाता है इसी कारण ये स्वयं को सूर्यवंशी कहते हैं |
प्रश्न - बप्पा रावल के पिता का नाम क्या था ?
उत्तर- बप्पा रावल के पिता का नाम नागादित्य था जो ईडर के शासक थे |
प्रश्न - बप्पा रावल का पुत्र कौन था ?
उत्तर- बप्पा रावल के पुत्र सुमेर सिंह थे जो मेवाड़ की गद्दी के अगले शासक हुए |
प्रश्न - बप्पा रावल की कितनी रानियाँ थीं ? बप्पा रावल की पत्नी का नाम क्या था ?
उत्तर- बप्पा रावल का विवाह नागदा के राजा चंद्रसेन की पुत्री कोकिला से हुआ | इसके पश्चात इन्होने कई विवाह किये | बप्पा रावल की लगभग 100 रानियाँ थीं जिनमें से 35 रानियाँ मुस्लिम शासकों की पुत्रियाँ थीं |
प्रश्न - बप्पा रावल की तलवार का बजन कितना था ?
उत्तर- किवदंतियों के अनुसार बप्पा रावल की तलवार का बजन 32 मन था |
प्रश्न - बप्पा रावल की हाईट कितनी थी ?
उत्तर- बप्पा रावल की हाईट के सम्बन्ध में कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है | कुछ लोग जनश्रुतियों के आधार पर इनकी हाईट 9 फीट मानते हैं |
प्रश्न - रावलपिंडी की स्थापना किसने की थी ?
उत्तर- वर्तमान रावलपिंडी की स्थापना का श्रेय बप्पा रावल को जाता है उन्ही के नाम पर इस स्थान का नाम रावलपिंडी पड़ा | बप्पा रावल ने मुस्लिम आक्रान्ताओं पर नजर रखने के लिए रावलपिंडी में सर्वप्रथम एक सैनिक चौकी बनाई थी |
प्रश्न - बप्पा रावल की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर- कुछ इतिहाकारों के अनुसार बप्पा रावल का निधन 753 ईसवी में हुआ जबकि कुछ इसे बप्पा के राज्य त्याग का समय मानते हैं | कुछ अन्य के अनुसार बप्पा रावल की मृत्यु 810 ईसवी में 97 साल की उम्र में हुई |
प्रश्न- बप्पा रावल की समाधि कहाँ है ?
उत्तर - बप्पा रावल की समाधि राजस्थान के नागदा में है | बप्पा रावल के समाधी स्थल को बप्पा रावल की छत्री कहा जाता है | कुछ इतिहासकारों के अनुसार बप्पा रावल की समाधि कश्मीर में है |
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