बीरबल का नगर निकाला ( आधी धूप आधी छाँव ) -
एक बार अकबर बादशाह ने बीरबल से रुष्ट होकर उनको आगरा शहर छोड़कर कहीं और चले जाने का आदेश दिया | आदेश पाकर बीरबल किसी दूर के गाँव में भेष बदलकर रहने लगे | वहां उनको किसी प्रकार की परेशानी नहीं थी | बीरबल एक स्वाभिमानी ब्यक्ति थे वह बादशाह के बिना बुलाये नहीं आ सकते थे | एक दिन बादशाह को उनकी याद आई और बीरबल के लिए उतावले होने लगे, लेकिन किसी को उनका पता ठिकाना भी नहीं मालूम था | हर जगह पता लगाने बाले भेजे गए लेकिन कहीं कोई पता नहीं चला तब बादशाह को एक तरकीब सूझी | उन्होंने शहर और गाँव –गाँव में मुनादी करा दी कि जो कोई ब्यक्ति आधी धूप ,आधी छांव में होकर बादशाह अकबर के सामने आएगा उसे एक हजार रूपये ईनाम के रूप में दिए जायेंगे |
यह खबर सारे शहर और गांवों में फ़ैल गई जो भी सुनता उसके मुंह में पानी आ जाता लेकिन किसी को कोई उपाय नहीं सूझ पाया | यह खबर बीरबल के कानों तक भी पहुँच गई बीरबल समझ गए कि बादशाह ने उन्हें तलाशने के लिए ही यह युक्ति अपनाई है |
बीरबल ने स्वयं अपने हाथों से एक खाट को बुना और एक पड़ोसी गरीब किसान को देकर कहा - “ इस खाट को अपने सिर पर रखकर बादशाह के सामने जाना और निवेदन करना कि मै आपके सामने आधी धूप आधी छांव में आया हूँ अतएव ईनाम मुझे मिलना चाहिए | “
बीरबल के कहे अनुसार उस किसान ने खाट को सिर पर रखकर बादशाह के दरबार में पहुँच गया और बीरबल द्वारा बतलाये गए निवेदन को कह सुनाया |
बादशाह समझ गए कि यह इस किसान के दिमाग का काम नहीं है और किसान से बोले – “ सही–सही बताओ यह उपाय तुमको किसने बताया है |”
किसान ने सारा हाल सच-सच वर्णन कर दिया – “ हुजूर एक बीरबल नाम के ब्राम्हण ने, जो कुछ दिनों से हमारे गाँव में आकर रह रहे हैं मुझे ऐसा करने कि अनुमति दी है |”
बादशाह बीरबल की खबर सुनकर बहुत खुश हुए और उस किसान को एक हजार रूपये देकर दो कर्मचारी भी उसके साथ भेज दिए जो बीरबल को आदरपूर्वक नगर ले आये| इस तरह बीरबल अपनी चतुराई से बादशाह का मनोरंजन करते थे|
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