शेर और बैल की पंचतंत्र कहानी | sher aur bail ki kahani -
बहुत समय पहले की बात है बुद्धसेन नामक एक व्यापारी था जो महिलारोप्य नामक शहर में रहता था | उसके पास बहुत धन दौलत थी फिर भी वह और अधिक धन कमाने के लिए शहर से बाहर व्यापर करने जाता रहता था | उसके पास दो बैल थे जिनमे से एक का नाम संजीवक और दुसरे का नाम नंदक था | व्यापारी अपने इन दोनों बैलों को बहुत प्यार करता था और बैल भी अपने मालिक को बहुत चाहते थे | एक बार बुद्धसेन ने व्यापार करने के लिए मथुरा जाने का मन बनाया | बुद्धसेन ने अपनी बैलगाड़ी तैयार करवाई और उसमें अपने दोनों पसंदीदा बैल जुतवाये और अपने कुछ नौकर और सांथियों के सांथ मथुरा की तरफ चल दिया | रास्ते में यमुना किनारे कछार से निकलते समय संजीवक का पैर दलदल में फंस गया | उसने बलपूर्वक अपना पैर निकलने का प्रयास किया तो उसका पैर टूट गया | पैर टूटने के कारण अब संजीवक बैल आगे चल नहीं पा रहा था | बुद्धसेन ने दो-तीन दिन उसी स्थान पर संजीवक के पैर ठीक होने का इन्तजार किया परन्तु पैर में कोई सुधार नहीं हुआ | जिस स्थान पर वह रुके थे वह स्थान घने जंगलों से घिरा था और चारो तरफ जंगली जानवरों और लुटेरों का डर था | बुद्धसेन के सांथियों ने इस स्थान पर सभी की जान को खतरा होने की बात कहकर किसी सुरक्षित स्थान पर चलने की सलाह दी | बुद्धसेन संजीवक को बहुत स्नेह करता था और वह उसे छोड़कर नहीं जाना चाहता था फिर भी अपने सांथियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उसने संजीवक के पास दो नौकर छोड़ दिए और मथुरा की और चला गया | वे दोनो वहां एक ही रात रुक सके और जंगली जानवरों के डर से भाग गए और बुद्धसेन के पास जाकर संजीवक बैल के मरने और उसका अंतिम संस्कार करने के उपरान्त आने के झूठीं बात बतला दी | बुद्ध सेन को बात सुनकर बड़ा दुःख हुआ |
संजीवक जिस स्थान पर था उसके आस-पास हरी-हरी घांस थी , संजीवक ने घास खाकर अपने प्राण बचा लिए | दिन बीतते गए और संजीवक का पैर भी ठीक हो गया | यमुना के किनारे घास की कोई कमी नहीं थी | संजीवक जी भर कर घास खाता और यमुना का शीतल जल पीकर बड़ा ही हस्ट-पुष्ट और बलवान् हो गया | अब वो स्वच्छंद होकर यमुना किनारे विचरण करता और मिट्टी और झाड़ियों में सींगों को मारकर उन्हें पैने करता और जोरों की हुंकार भरता |
एक दिन पिंगलक नामक शेर जो उस जंगल का राजा था पानी पीने के लिए वहां आया | उस समय संजीवक जोरदार हुँकार भर जोरों की गर्जना कर रहा था | पिंगलक शेर ने ऐसी आवाज पहले कभी नहीं सुनी थी अतः वह डर कर बिना पानी पिये वहां से भाग गया |
यह दृश्य दमनक और करकट नामक दो गीदड़ देख रहे थे और पिंगलक को इस तरह भयभीत होकर भागते देख दोनों को बहुत आश्चर्य हुआ | ये दोनों गीदड़ पिंगलक शेर के मंत्री थे और उसके आस-पास मंडराते रहते थे | सिंह जब भी शिकार करता तो थोडा बहुत जो भी बच जाता उसे खा कर अपना पेट भर लेते थे |
दमनक ने करकट से कहा-“ पिंगलक हमारा राजा है और जंगल के सारे जानवर उससे भय खाते हैं | वह बिना पानी पिए ही भाग गया और बहुत डरा हुआ दिखलाई दे रहा है ,इसका क्या कारण हो सकता है ?”
करकट ने कहा- “ हाँ सो तो है पर वह जंगल का राजा है और वह क्या करे और क्या ना करे उसकी मर्जी इससे हमें क्या ?”
दमनक बोला – “ जो भी हो पर इस बात का पता तो लगाना ही पड़ेगा |’’
दोनों हिम्मत करके शेर के पास जाते हैं और दमनक पूछता है- “ महाराज, आज आप यमुना किनारे गए और प्यासे होने के बाद भी बिना पानी पिये वापस आ गए | ऐसा पहली वार देखा है | कुपया हमें इसका कारण बतलायें | हम दोनों आपकी इस दुविधा को दूर करने का प्रयास करेगें |”
पिंगलक ने बड़े ही संकोच से दोनों को सारी बात बतला दी | दमनक बोला – “ महाराज आप इस जंगल के राजा हैं और वह प्राणी जो भी हैं हम उसे आपके सामने लेकर ही आयेंगे |”
दमनक और करकट दोनों गीदड़ उसी स्थान पर जाकर छुप जाते है जिधर संजीव बैल रहता था | दोनों को कुछ देर बाद बड़ा ही हस्ट पुष्ट बैल दिखलाई देता है जो जोरों की गर्जना कर रहा था दोनों को समझते देर नहीं लगी कि यह प्राणी वही है जिससे डरकर शेर भाग गया था | दोनों डरते हुए उस बैल के पास जाते हैं |
दमनक बैल से कहता है – “ आप तो बहुत बलवान और शक्तिशाली हो और ऐसा प्रतीत होता है मानो आप ही भगवान् शिव के वाहन नंदी हो | इस जंगल में हमारे राजा पिंगलक का राज चलता है | वो आपसे मित्रता करना चाहते है और आपसे मिलना चाहते है |”
दमनक करकट से बोला-“ शक्तिशाली वही है जिसके पास बुद्धि है अब हमें अपनी बुद्धि से दोनों में फूट डालनी पड़ेगी , हम दोनों में मित्रभेद निति से फूट डालेंगें |”
करकट भी दमनक की बात से सहमत हो गया और दोनों मिलकर पिंगलक के पास जा पहुंचे और दमनक शेर से बोला-“ महाराज ! जो बात हम आपको बतलाना चाह रहें है उसे सुनकर आपको बहुत दुःख होगा परन्तु आपकी और आपके राज्य की सुरक्षा के लिए आपको यह बात बतलाना जरुरी है | अगर आप अभय दान दें तो कहूँ ? “
पिंगलक बोला-“ दमनक तुम जो कहना कहते हो निडर होकर कहो | मै तुमें अभयदान देता हूँ |”
दमनक बोला – “ महाराज ! संजीवक को अपनी ताकत पर
बहुत घमंड है और वो अपनी ताकत के बल पर आपको मारकर आपके राज्य को हडपना चाहता है |
मुझसे कह रहा था इस काम में मेरी मदद करोगे तो तुमें राज्य का मंत्री बना दूंगा |
पर मैं तो आपका बफादार हूँ इसीलिए आपको सारी बात बतला रहा हूँ |”
दमनक की बात सुनकर पिंगलक को बहुत दुःख हुआ और गुस्सा भी आया और दमनक से बोला- “ नहीं, संजीवक मेरा बहुत अच्चा मित्र है वह ऐसा क्यों करेगा ?”
दमनक बोला- “ महाराज ! राज्य का लोभ भाई को भाई का दुश्मन बना देता है तो संजीवक क्या चीज है | शेर और बैल में मित्रता होना स्वाभाविक भी नहीं है आप मांसाहारी है और वह शाकाहारी जीव है |”
दमनक की चतुराई भरी बातें सुनकर पिंगलक को भी दमनक की बातें सही लगने लगीं इस प्रकार उसने शेर के दिमाग में बैल के विरुद्ध जहर घोल दिया |
अब अपने कार्य को आगे बढ़ाते हुए संजीवक बैल के मन में शेर के विरुद्ध भावना भड़काने के लिए दोनों संजीवक बैल के पास पहुँच जाते हैं |
दमनक संजीवक से कहता है – “ मित्र ! पिंगलक तुम्हारा दोस्त नहीं अपितु दुश्मन है वह जंगल के जानवरों से कह रहा था कि वह तुम्हे मारकर तुम्हारा गोस्त जंगल के जानवरों को खिलवा देगा |”
दमनक की बात पर संजीवक को विश्वास नहीं हुआ | संजीवक बोला – “ पिंगलक ने मुझे बुलाकर मुझसे दोस्ती की थी और वह हमेशा मेरे सांथ रहता है मुझसे हर बात साझा करता है भला वह ऐसा क्यों करेगा ?”
दमनक बोला –“ तुम पिंगलक से ज्यादा बलशाली हो और तुम्हरी ताकत से पिंगलक जलता है | वह एक कमजोर शासक है और तुम्हें मारकर जंगल के जानवरों में अपनी धाक जमाना चाहता है |”
इस प्रकार दमनक ने दोनों मित्रो के मन में भेद उत्पन्न कर दिया और दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति अविश्वास की भावनायें जाग गईं |
आखिर अगले ही दिन पिंगलक और संजीवक का सामना हो गया दोनों बहुत गुस्से में थे | दमनक स्थिति को भांपकर पिंगलक से बोला –“ देखो महाराज ! संजीवक अपने सींगों को ताव देता हुआ आपको मारने आ रहा है | “
पिंगलक और संजीवक पास आते ही आपस में भीड़ गए और
दोनों में बहुत ही घमासान युद्ध हुआ कभी संजीवक भारी पड़ता तो कभी पिंगलक | दोनों की लड़ाई
घंटो चली | आखिर लड़ाई में संजीवक बैल मारा गया और पिंगलक शेर की जीत हुई | लेकिन
पिंगलक भी अपनी जीत से खुश नहीं था क्यूंकि इस लड़ाई में उसने अपना सबसे प्रिय
मित्र खो दिया था |
संजीवक के मरने से दमनक और करकट दोनों बहुत खुश थे आखिर उन्होंने मित्रभेद नीति का सहारा लेकर दो मित्रो में फूट डालकर अपना कार्य सिद्ध कर लिया |
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