Swami Bramhanand ji Maharaj |
स्वामी ब्रह्मानन्द जी महाराज जीवन चरित्र | Swami Bramhanand jivan charitra -
स्वामी ब्रह्मानन्द जी महाराज लोधी समाज के एक महान संत और समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे | स्वामी ब्रम्हानंद ने समाज में फैली कुरूतियों को मिटाने के लिये काम किया | देश की आजादी के लिये उन्होंने गाँधी जी के सांथ कई आन्दोलन किये और कई बार जेल भी गए | देश की आजादी के के बाद वे उत्तर प्रदेश के हमीरपुर से दो बार सांसद भी रहे |उन्हें देश का पहला भगवाधारी (सन्त ) सांसद माना जाता है | उन्होंने सन्यास ग्रहण करने के बाद कभी भी पैसे को हाँथ नहीं लगाया | स्वामी ब्रह्मानन्द ने देश में शिक्षा पर व्यापक कार्य किया उन्होंने कई शिक्षण संस्थायें भी खोलीं | स्वामी ब्रह्मानन्द गौ-हत्या के विरोध में देश का सबसे बड़ा आन्दोलन प्रारंभ किया और इसके लिये उन्हें जेल भी जाना पड़ा |
स्वामी ब्रह्मानन्द लोधी का प्रारंभिक जीवन -
स्वामी ब्रम्हानंद का जन्म 4 दिसम्बर 1984 को उत्तर प्रदेश के बरहरा गाँव में हुआ | बरहरा हमीरपुर जिले की राठ तहसील के अंतर्गत आता है | स्वामी ब्रम्हानंद के बचपन का नाम शिव दयाल था | स्वामी ब्रम्हानंद के पिता का नाम मातादीन लोधी था जो एक साधारण से किसान परिवार से थे | उनकी माता का नाम जसोदा बाई था | बरहरा में उनका घर आज जर्जर अवस्था में है | गाँव में उनका एक मंदिर भी है जो लोगों की आस्था का केंद्र है | शिव दयाल के बचपन की शिक्षा हमीरपुर में हुई | बाद में धर्म ग्रंथों का अध्ययन उन्होंने हर में ही किया | स्वामी ब्रह्मानंद जी का विवाह सात वर्ष की उम्र में राधा बाई से हुआ | राधा बाई के पिता का नाम गोपाल महतो था वे भी हमीरपुर के रहने वाले थे | स्वामी ब्रम्हानंद और राधा बाई के एक पुत्र और एक पुत्री थे |
स्वामी ब्रह्मानन्द जी महाराज का सन्यासी बनना -
स्वामी ब्रह्मानन्द जी ने 24 वर्ष की आयु में परिवार का मोह त्याग कर दिया और हरिद्वार की हर की पोंडी में संन्यास की दीक्षा ली और लोग अब उन्हें शिव दयाल लोधी के स्थान पर स्वामी ब्रम्हानंद नाम से जानने लगे | संन्यास लेने के बाद स्वामी ब्रह्मानंद सम्पूर्ण भारत के तीर्थ स्थानों का भ्रमण
किया। इस दौरान उनका संपर्क कई महान साधु संतों से हुआ। इसी बीच उन्हें
गीता रहस्य प्राप्त हुआ | सन्यास ग्रहण करने के बाद स्वामी ब्रम्हानंद ने कई पाठ शालायें खुलवाई और गौ-रक्षा के लिये आन्दोलन चलाये | 1956 अखिल भारतीय साधु संतों के अधिवेशन हुआ जिसमे भारत के प्रथम राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी सम्मिलित हुए | इस अधिवेशन में स्वामी ब्रम्हानंद को आजीवन सदस्यबनाया गया |
स्वामी ब्रह्मानन्द जी का स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान -
पंजाब के भटिंडा में स्वामी ब्रह्मानन्द भेंट महात्मा गाँधी से हुई। स्वामी जी सन् 1921 में गाँधी जी के संपर्क में आकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े और बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया ।स्वामी ब्रह्मानंद के प्रयासों से गाँधी जी 1928 में स्वामी ब्रह्मानन्द की जन्मस्थली राठ आये । 1930 में स्वामी जी ने नमक आन्दोलन में भाग लिया। इस बीच उन्हें दो वर्ष के लिये जेल जाना पड़ा | 1942 में स्वामी ब्रम्हानंद को पुनः भारत छोड़ो आन्दोलन में जेल जाना पड़ा। इसी बीच वे कानपूर, हरदोई और हा,हमीरपुर की जेलों में भी रहे | स्वामी जी ने अपनी मात्रभूमि को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करवाने के लिये लोगों को जागरूक किया और आजादी के आन्दोलन में भाग लेनें के लिये प्रेरित किया |
स्वामी ब्रह्मानन्द जी का शिक्षा में योगदान -
स्वामी ब्रह्मानन्द जी महाराज ने बुन्देलखण्ड में शिक्षा के प्रसार के लिये अथक प्रयास किये । उनका मानना था कि देश में फैली कुरूतियों को शिक्षा के द्वारा ही हटाया जा सकता है | उन्होंने पंजाब और उत्तर भारत में कई पाठशालायें खुलबाई | स्वामी ब्रम्हानंद ने हमीरपुर में वर्ष 1938 में ब्रह्मानंद इंटर कॉलेज़, 1943 में ब्रह्मानन्द संस्कृत महाविद्यालय तथा 1960 में ब्रह्मानन्द महाविद्यालय की स्थापना की। वर्तमान समय में देश के कईहिस्सों विशेषकर बुंदेलखंड में स्वामीब्रम्हानंद नाम सेस्कूल ,कॉलेज और शिक्षण संस्थायें चल रही हैं |
स्वामी ब्रह्मानन्द जी का गौ- रक्षा के लिये प्रयास -
स्वामी ब्रह्मानन्द जी महाराज गौ-हत्या को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित थे | उन्होंने गौ-हत्या के विरोध में 1966 में अब तक का सबसे बड़ा आन्दोलनचलाया जिसमे करीब 11-12 लाख लोग शामिल हुए | इससे तात्कालीन सरकार घबरा गई और उन्हें जेल भेज दिया गया | जेल से आने के बाद सरकार के इस कदम के विरोध में स्वामी ब्रम्हानंद ने प्रण किया की अब वो संसद जायेंगे और वहीँ अपना पक्ष रखेंगें | 1967 में हमीरपुर लोकसभा सीट से जनसंघ से चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीतकर संसद भवन पहुंचे। संसद में उनके द्वरा गौ-हत्या पर दिए गए भाषण को ऐतिहासिक मन जाता है | वे भारत के पहले सन्यासी थे जो आजाद भारत में सांसद बने। स्वामी ब्रम्हानंद जी 1967 से 1977 तक हमीरपुर से सांसद रहे। 1972 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के आग्रह पर स्वामी जी कांग्रेस से चुनाव लड़ा और जीते |
स्वामी ब्रह्मानन्द जी का पैसा न छूने का प्रण -
स्वामी ब्रह्मानन्द जी महाराज की कोई निजी संपत्ति नहीं थी। संन्यास ग्रहण करने के बाद ने पैसा न छूने का प्रण लिया था और इसका पालन मरते दम तक किया। उन्हें जिंदगी में जो कुछ मिला वह सब लोगों की शिक्षा और कल्याण में खर्च कर दिया | वे अपनी पेंशन छात्र-छात्राओं के हित में दान कर दिया करते थे| उनका मानना था की उनके पास जो भीरुपया-पैसा है उस पर देश के लोगों का अधिकार है |
स्वामी ब्रह्मानन्द जी महाराज द्वारा देह त्याग -
महान कर्मयोगी , समाजसेवी और स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रणेता स्वामी ब्रह्मानन्द जी महाराज 13 सितम्बर 1984 को ब्रह्मलीन हो गए। ऐसे महान कर्मयोगी को शत-शत नमन् |
स्वामी ब्रह्मानन्द के संबंध में महत्वपूर्ण तथ्य -
स्वामी ब्रह्मानन्द जी महाराज गोरक्षा आंदोलन के प्रणेता थे | वे लोधी राजपूत समाज के पहले सांसद के सांथ सांथ भारत के पहले संत(सन्यासी ) सांसद भी थे | भारत सरकार 14 सितंबर 1997 को स्वामी ब्रम्हा नन्द जी की स्मृति में डाक टिकट जारी किया। विरमा नदी पर स्थित बांध का नाम स्वामी ब्रह्मानन्द जी महाराज के नाम पर स्वामी ब्रम्हानंद रखा गया है यह बाँध हमीरआवर जिले में बनाया गया है ।
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