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वीर दुर्गादास राठौर जीवनी

वीर दुर्गादास राठौर जीवनी और इतिहास  | Veer Durgadas Rathore Biograpbhy and history in hindi -

वीर दुर्गादास राठौड़ (राठौर)  एक महान राजपूत योद्धा थे जिन्होंने अपनी मात्रभूमि  मारवाड़ (जोधपुर ) को मुगलों के आधिपत्य से मुक्त करवाया  और हिन्धू धर्म की रक्षा की | वीर दुर्गादास ने मारवाड़ के राजकुमार अजीत सिंह को औरंगज़ेब के चंगुल से मुक्त करवाकर  दिल्ली से मारवाड़ लाये और लगातार कई वर्षों तक मुगलों से संघर्ष कर अजीत सिंह को मारवाड़ का राजा बनवाया | अजीत सिंह के पिता राजा जसवन्त सिंह ने उन्हें भविष्य में मारवाड़ का रक्षक कहा था  जिसे उन्होंने सत्य  सिद्ध कर दिखाया | वीर दुर्गादास को मारवाड़ का मोती और मारवाड़ उद्धारक भी कहा जाता है | उनकी वीरता , कर्तव्य निष्ठा और ईमानदारी के किस्से न सिर्फ मारवाड़ में वल्कि पुरे राजस्थान में गाए जाते हैं | आज भी राजस्थान में कहा जाता है '' माई ऐहड़ौ पूत जण, जेहड़ौ दुर्गादास'' अर्थात माता ऐसे पुत्र को जन्म देना जैसे दुर्गादास |

वीर दुर्गादास राठौर   का जन्म और का बचपन | Veer Durgadas Birth and Early Life-

 वीर दुर्गादास राठौर  का जन्म 13 अगस्त 1638  को ग्राम सालवा में हुआ था | वे सूर्यवंशी राठौड़ कुल के राजपूत थे |  उनके पिता का नाम आसकरण था जो मारवाड़ ( जोधपुर) के महाराजा  जसवन्त सिंह (प्रथम) के  राज्य की दुनेवा जागीर के जागीदार थे | वीर दुर्गादास राठौड़ की माता का नाम नेतकँवर बाई था |  दुर्गादास की माता अपने पति आसकरण से  दूर सालवा के पास लुडावे (लुडवा ) गाँव में रहती थीं | बचपन में दुर्गादास का  लालन पोषण उनकी माता नेतकँवर ने ही किया और उनमें स्वाभिमान और देशभक्ति के संस्कार कूट-कूट डाले |

वीर दुर्गादास को महाराजा जसवन्त सिंह का बुलावा -

एक समय की बात है एक पशु चारक राईका दुर्गादास राठौर के खेत में अपने ऊंट चराने लगा | बालक दुर्गादास के मना करने पर भी वह नहीं माना और उसने मारवाड़ के महाराजा जसवंतसिंह के बारे में अपशब्द कहे जिससे  दुर्गादास को अत्यधिक क्रोध आया और उन्होंने अपनी तलवार निकाली  और उस उस चरवाहे को मार दिया |जब यह समाचार महाराजा जसवंतसिंह तक पहुंचा तो उन्होंने दुर्गादास राठौड़ को अपने राजभवन बुलवाया और उस राईका को मारने का कारण पूछा | बालक दुर्गादास ने निर्भय होकर महाराज के सामने बतलाया कि  वह अनाधिकृत रूप से दूसरे के क्षेत्र में अपने मवेशी  चरा रहा था और महाराज और मारवाड़ राज्य के बारे में गलत बातें कर रहा था इसी कारण मैंने उसे मारा है | महाराजा जसवन्तसिंह ने  दुर्गादास राठौड़ की निर्भीकता और साहस से खुश होकर उन्हें क्षमा करते हुए अपनी सेना में शामिल कर लिया | धीरे-धीरे वीर दुर्गादास राठौड़ की बहादुरी की चर्चा चारो ओर फैलने लगी | अब महाराजा जिधर  भी जाते दुर्गादास को अपने सांथ ले जाते |महाराजा जसवन्त सिंह वीर दुर्गादास को मारवाड़ का भावी रक्षक कहा करते थे |

महाराजा जसवन्त सिंह की मृत्यु और अजीत सिंह का जन्म -

 इस समय दिल्ली की गद्धी पर औरंगजेब का शासन था  उसने षड्यंत्र पूर्वक  1678 में महाराजा जसवन्त सिंह को पठानों के विद्रोह को दबाने के लिये अफगानिस्तान भेजा | जहाँ नवम्बर-दिसम्बर 1678 को  उनकी मृत्यु हो गई | औरंगज़ेब पूरे  भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाना चाहता था | महाराजा जसवन्त सिंह की मृत्यु से वह बहुत खुश था क्यूंकि मारवाड़ में अब वह बड़ी आसानी से अपने मंसूबे पूरे कर सकता था |जिस समय महाराजा जसवन्त सिंह की मृत्यु हुई उस समय उनकी कोई भी जीवित पुत्र संतान नहीं थी | उनकी मृत्यु के समय उनकी दो रानियाँ रानी जादम और रानी नरुकी गर्ववती थीं | फरवरी 1679 में  दोनों रानियों ने अलग-अलग पुत्रों को जन्म दिया |रानी जादम के पुत्र का नाम अजीत सिंह और रानी नरुकी के पुत्र का नाम रणथम्बन रखा गया | जन्म के कुछ समय पश्चात रणथम्बन की मृत्यु हो गई | औरंगज़ेब ने महाराजा जसवन्त सिंह  की मृत्यु के बाद जोधपुर पर कब्ज़ा कर लिया और शाही हाकिम को वहां बिठा दिया कुछ समय पश्चात उसने महाराजा जसवन्त सिंह  के करीबी रिश्तेदार ( भाई अमरसिंह के  के पोत्र) और अपने बफादार  कीर्ति सिंह को मारवाड़ की  गद्दी पर बैठाया | कीर्ति सिंह एक तरह से कठपुतली  शासक था और शासन की बागडोर औरंगज़ेब के हांथों में थी | इस दौरान औरंगज़ेब ने जोधपुर और मारवाड़ में कई मंदिर तोड़े |

वीर दुर्गादास और अजीत सिंह का दिल्ली जाना -


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Veer Durgadas Rathore Jivni

वीर दुर्गादास राठौर और और मारवाड़ के कुछ प्रमुख सैनापति मारवाड़ को औरंज़ेब की अधीनता से मुक्त कराना चाहते थे | वीर दुर्गादास राठौर कुंवर अजित सिंह को मारवाड़ का शासक घोषित करवाने के लिये मारवाड़ के  कुछ प्रमुख जागीदारों और सम्पन्न  लोगों के सांथ औरंगजेब के दरवार पहुंचे | औरंगजेब ने अजीत सिंह को राजा बनाने के संबंध में कोई भी स्पष्ट बात ना करते हुए कहा कि जब तक अजीत सिंह बड़े नहीं हो जाते तब तक वो दिल्ली में मुगलिया देख रेख में रहेंगे और इसके बाद ही अजीतसिंह को राजा बनाने के संबंध में कोई निर्णय लिया जायेगा |इतिहासकारों के अनुसार  संभवतः औरंगजेब अजीतसिंह को मारना चाहता था या  उनसे इस्लाम धर्म स्वीकार करावाना चाहता था | इस  दौरान  अजीत सिंह अपनी माता जादम के सांथ  दिल्ली में रूप सिंह राठौड़ की हवेली में ही रहे | वीर दुर्गादास राठौड़  औरंगजेब की इस नीति को भांप गए और अजीत सिंह को दिल्ली से जोधपुर लाने की योजना में लग गए |

 वीर दुर्गादास द्वारा अजीत सिंह को दिल्ली से मुक्त कराना -

वीर दुर्गादास राठौड़ ने अजीत सिंह को दिल्ली से निकालने की योजना बनाई | वीर दुर्गादास ने ठाकुर मोकम सिंह बलुन्दा , मुकुंद दास खिंची , रणछोर दास राठौड़ और रघुनाथ भाटी  के सांथ मिलकर एक योजना बनाई | योजना के अनुसार अजीत सिंह को दिल्ली से निकालने के लिये राजपूत योद्धाओं के अलग-अलग दल बनाए गए | इनमे से एक दल पर अजीत सिंह को दिल्ली से मारवाड़ तक लाने, दूसरे दल पर दिल्ली की हवेली में मुग़ल सेना को रोकने और अन्य दलों को पीछा करने वाली  मुग़ल सेना पर हमला कर उसे रास्ते में ही रोकनी की जिम्मेदारियां मिलीं  | राजकुमार अजित सिंह को दिल्ली की हवेली से निकालने के संबंध में अलग-अलग स्त्रोतों से अलग-अलग जानकारी मिलती है | कवि  जगजीवन भट्ट द्वारा रचित अजीतोदय काव्य के अनुसार  ठाकुर मोकम सिंह चांदावत  की धर्मपत्नी बघेलीजी ने अपनी नवजात पुत्री को अजीत सिंह के स्थान गौरा धाय को हवेली में दे  दिया और उनके स्थान पर अजित सिंह को ले आयीं गौरा  अजीत सिंह धाय थीं |  बूंदी के शासक सूर्यमल मिश्रण द्वारा रचित वंश भास्कर काव्य के अनुसार गोविन्द दास  ने कालवेलिया (सांप पकडने वाले ) का वेश बनाया और सांप की टोकरियों में अजीत  सिंह और दलथम्बन को ले आये इसमें  उनके सांथ दुर्गादास भी थे  | गौरा धाय ने राजकुमार के स्थान  खुद अपनी  नवजात बच्ची को रख दिया |  इस तरह गौरा धाय ने मेवाड की  पन्ना धाय  की तरह अपने कर्तव्य का निर्वहन किया और अजीत सिंह की जान बचाई | इसी कारण उन्हें मारवाड़ की पन्ना धाय  भी कहा जाता है |अंग्रेज इतिहासकार  जेम्स टाड के अनुसार अजीत सिंह को मिठाई की टोकरी में रखकर दिल्ली से निकला गया | कुछ स्त्रोतों के अनुसार दलथम्बन की मृत्यु दिल्ली से मारवाड़ आते समय रास्ते में  हुई जबकि कुछ स्त्रोतों के अनुसार दलथम्बन की मृत्यु जन्म के बाद ही हो गई थी |

वीर दुर्गादास और मुगलों का रास्ते में संघर्ष -

इतिहासकारों के अनुसार एक दिन औरंगज़ेब के आदेश पर मुग़ल सेना ने उस हवेली को घेर लिया जिधर अजित सिंह रुके थे | कहा जाता है की मुग़ल सेना के हवेली आने के पूर्व ही वीर दुर्गादास कुंवर अजीत सिंह को हवेली से निकाल चुके थे | मुग़ल सेना के हवेली आने पर हवेली में रुके राजपूत सैनिकों को मुग़ल सेना में जमकर संघर्ष हुआ | मुगलों के सामने राजपूतों की टुकड़ी बहुत छोटी थी फिर भी राजपूत सैनिकों ने मुग़ल सेना को भारी नुकसान पहुँचाया | हवेली में एक-एक राजपूत पूरी बहादुरी से अधिरी सांस तक लड़ा | मुग़ल टुकड़ी ने हवेली से निकलकर वीर दुर्गादास और अजित सिंह का पीछा किया और दोनों तरफ से जबरदस्त संघर्ष हो रहा था | रास्ते में रणछोड़ दास राठौर अपने दल बल के सांथ  मुग़ल टुकड़ी का इन्जार कर रहे थे  और उन्होंने बहुत देर तक मुग़ल सेना को रोके रखा अंत में रणछोड़ दास राठौड़ वीर गती कप प्राप्त हुए | काफी संघर्ष के बाद शाम होते-होते दुर्गादास राठौड़ ने अजीत सिंह को मारवाड़ की सीमा तक पंहुचा दिया | अब तक मुग़लटुकड़ी काफ़ी थक चुकी थी और उसे भी भारी छति पहुंची थी इसी कारण वह वापस लौट गई |इस संघर्ष में कई राजपूत सैनकों ने अपने प्राणों की आहूति दी | वीर दुर्गादास बालक अजित सिंह को मारवाड़ राज्य में सिरोही के पास कालिन्दी गाँव ले गए | कालिन्दी में अजित सिंह को जयदेव नामक पुरोहित के घर रखा गया | यहाँ मारवाड़ के बफादार मुकुलदास खिंची ने साधू वेश में रहकर अजित सिंह की रक्षा की | इसी बीच वीर दुर्गादास में मेवाड के राणा राज सिंह से सहायता मांगी |राणा राज सिंह ने मेवाड़ की एक छोटी सी रियासत केलवा का पट्टा  वीर दुर्गादास को दिया और अजित सिंह को संरक्षण देने का वादा किया |

वीर दुर्गादास द्वारा  औरंगज़ेब के पुत्र अकबर को अपनी ओर मिलाना -

इन सब घटनाओं से औरगाज़ेब बहुत गुस्से में था और उसने अपने पुत्र सुल्तान मुहम्मद अकबर को वीर दुर्गादास को सबक सिखाने के लिये भेजा | परन्तु वीर दुर्गादास  और मेवाड के महराजा राज सिंह ने ने बड़ी की सूझबूझ और चालाकी से अकबर को अपनी तरफ मिला लिया | उन्होंने  शहजादा  अकबर को दिल्ली का बादशाह बनाने का लालच दिया | 1681 में अकबर ने अपने आप को अगला मुग़ल बादशाह घोषित कर दिया |परन्तु इसी बीच मेवाड के महाराजा राज सिंह की मृत्यु हो गई | परन्तु वीर दुर्गादास ने हार नहीं मानी और अकबर को लेकर मराठों के पास चले गये | जब यह बात अकबर को पता चली तो उसने अपना ध्यान मारवाड़ से हटाकर दक्षिण में मराठों पर लगाया | परन्तु दुर्भाग्य से वीर   दुर्गादास की यह योजना भी  सफल नहीं हो सकी  अकबर को निर्वासित होकर फारस  जाना पड़ा | इस दौरान वीर दुर्गादास मारवाड़ को मुगलों की अधीनता से मुक्त करवाने का प्रयास करते रहे |वीर दुर्गादास को मुगलों की तरफ से पैसे और अच्छा पद दिए जाने की पेशकस की गई परन्तु उन्होंने कबी भी अपने ईमान से समझौता नहीं किया | वीर दुर्गादास राठौड़ ने गौरिल्ला युद्ध नीति अपनाई | इस दौरान वे लगातार मुग़ल सैनिकों और उनकी टुकड़ियों पर हमला करते और उन्हें लूट लेते थे जिससे मुग़ल सैनिकों के मन में वीर दुर्गादास राठौड़ का भय व्याप्त हो गया और मुग़ल राजकोस को भी काफी  क्षति पहुंची |

वीर दुर्गादास द्वारा शहजादा अकबर की संतानों को संरक्षण देना-

अकबर की दो  संतान  जिनमे एक पुत्र और एक पुत्री थीं | अकबर की संतानों  की देख रेख वीर दुर्गादास ने की |  औरंगज़ेब ने  वीर दुर्गादास से अकबर की संतानों  को दिल्ली भिजवाने का आग्रह किया जिसे वीर दुर्गादास ने स्वीकार कर लिया और  अकबर की पुत्री    को दिल्ली भिजवा दिया | औरंगज़ेब यह जानकार हैरान हुआ की इसके पोता-पोती की शिक्षा दुर्गादास ने मुस्लिम काजी से मुस्लिम रीति रिवाजों से करवाई | औरंगज़ेब ने वीर दुर्गादास को मनसब देने का प्रस्ताव दिया परन्तु दुर्गादास ने कोई भी निजी फायदा लेने से इंकार कर दिया और लगातार अजित सिंह को राजा बनाने की बात पर अड़े रहे |

Veer Durgadas Rathore
Veer Durgadas Rathore

 अजीत सिंह का राज्याभिषेक -

लगभग  20 साल तक मारवाड़ सीधे मुग़ल शासन के अधीन रहा | इसी बीच वीर दुर्गादास राठौर मेवाड के राजाओं  और मराठों से लगातार संपर्क  में रहे  |अब तक अजित सिंह  बड़े हो चुके थे |  1707 में औरंगज़ेब की मृत्यु हो गई इस मौके  का वीर दुर्गादास और अजित सिंह ने पूरा फायदा उठाया और मुग़ल सेना को मारवाड़ से खदेड़ दिया | बड़े ही धूम-धाम के सांथ अजित सिंह मारवाड़ के राजा बने | वीर दुर्गादास राठौर ने महाराज  जसवंत सिंह को अपना दिया  वचन पूरा किया और उनके द्वारा दी गयी मारवाड़ के भावी रक्षक की उपाधि को सत्य सवित कर दिया | अमर सिंह के राजा बनने के बाद औरंगज़ेब द्वारा तोड़े गए मन्दिरों का पुनःनिर्माण करवाया गया  |

वीर दुर्गादास राठौर की मृत्यु | Veer Durgadas Rathore dies -

 वीर दुर्गादास राठौर ने औरंगज़ेब की इस्लामीकरण की साजिस को असफल कर अपने धर्म की रक्षा की और  जीवन भर  मारवाड़ की सेवा करते रहे |मारवाड़ में उन्होंने कोई बड़ा पद स्वीकार नहीं किया | अजीत सिंह के राजा बनने के बाद कुछ लोगों ने अजीत सिंह को दुर्गादास के विरुद्ध भड़काना शुरू कर दिया और अजीत सिंह का दुर्गादास के प्रति व्यवहार बदलने लगा | स्वाभिमानी वीर दुर्गादास  राठौर ने सन्यास ले लिया  | वे मारवाड़ से मेवाड़ के विजय नगर चले गए और जीवन के अंतिम दिन भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन में क्षिप्रा के तट पर बिताये |वीर दुर्गादास राठौर की मृत्यु 22 नवम्बर 1718  हुई  |उज्जैन  जिस स्थान पर उनका अंतिम संस्कार किया गया वहां  सुन्दर  नक्कासी युक्त वीर दुर्गादास की छतरी बनाई गई है | यह स्थान राजपूतों और देशभक्तों के लिये प्रेरणा स्त्रोत है |

वीर दुर्गादास से संबंधित पुस्तक (Books ) ऑनलाइन उपलब्ध है जिसकी लिंक नीचे दी गई है -

देशभक्त - दुर्गादास राठोड-  (लेखक-देवीसिंह मंडावा )  

दुर्गादास - (लेखक - प्रेमचंद )

इन्हें भी जाने  -