Panchtantra ki Kahaniya |
पंचतन्त्र कहानियां | Panchtanta ki Kahaniya in Hindi Online -
पंचतन्त्र के कहानियों की रचना लगभग दो हजार साल पूर्व आचार्य विष्णु शर्मा द्वारा की गई थी | पंचतन्त्र की कहानियों को पांच तंत्रों अर्थात भागों में बांटा गया है इसीलिये कहानियों के इस संग्रह को पंचतन्त्र कहा जाता है | आज नीतिकथाओं में पंचतन्त्र की कहानियों को प्रथम स्थान प्राप्त है इसी कारण अभी तक विश्व की लगभग 50 भाषाओँ में इनका अनुवाद किया जा चुका है | पंडित विष्णु शर्मा ने पंचतन्त्र की रचना क्यूँ की इसके संबंध में नीचे दी गई कथा प्रचलित है -पंचतन्त्र की रचना (निर्माण) की कथा -
प्राचीन समय की बात है एक राजा हुआ करते थे जिनका नाम अमरशक्ति था उनकी राजधानी महिलारोप्य नामक नगर था | राजा अमर शक्ति बहुत ही योग्य, वीर, न्यायप्रिय और दानवीर थे उनके तीन पुत्र बहुशक्ति, उग्रशक्ति और अनन्तशक्ति थे | राजा के तीनो पुत्र मूर्ख और बेकार के कार्यों में अपना समय बर्बाद करते थे | राजा ने उन्हें बहुत अच्छी शिक्षा देने का प्रयत्न किया परन्तु तीनो ने पढाई –लिखाई में कोई रूचि नहीं ली | राजा अपने पुत्रों की मुर्खता और निकम्मेंपन से बहुत परेशान थे | अब राजा बहुत चिंतित रहने लगे उन्हें डर सताने लगा कि उनके जाने के बाद उनके राज-पाठ का क्या होगा | उनके बेवकूफ पुत्र तो कुछ ही दिनों में राज्य को नष्ट कर देंगें | उनके तीनो पुत्रों में कोई भी ऐसा नहीं था जो राज्य का भार अपने कन्धों पर उठा सके | राजा अमरशक्ति के राज्य में कई योग्य शास्त्रों में पारंगत और निपुण शिक्षक थे परन्तु उनमे से कोई भी ऐसा नहीं था जो उन तीनों को शिक्षित कर सके | राजा के एक बहुत ही योग्य मंत्री थे जिनका नाम सुमति था उन्होनें राजा को नीतिशास्त्र में पारंगत और सर्वगुण सम्पन्न आचार्य विष्णु शर्मा के बारे में बतलाया | राजा अमरशक्ति ने आचार्य विष्णु शर्मा से मिलकर अपने पुत्रों को शिक्षा देने का अनुरोध किया और कहा –‘’ अगर आप मेरे पुत्रों को अल्प-अवधि में शिक्षित कर राजनीति में पारंगत कर देंगे तो मै आपको 100 गाँव और मुहं माँगा इनाम दूंगा |’’
राजा की बात सुनकर आचार्य विष्णु शर्मा को हंसी आ गई और उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा-‘’ राजन मैं आपकी परेशानी समझ सकता हूँ , मैं सरस्वती का उपासक हूँ और मुझे धन –माया से कोई लगाव नहीं है , परन्तु इस राज्य की भलाई के लिये मैं छः माह के अन्दर आपके पुत्रों को शिक्षा देकर उन्हें कुशल राजनीतिज्ञ बना दूंगा |”
राजा ने आचार्य विष्णु-शर्मा की बातें सुनकर अपने पुत्र उन्हें सोंप दिए और आचार्य विष्णु शर्मा उन्हें अपने आश्रम ले गये जिधर उन्होंने राजपुत्रों को शिक्षित करने के लिये कई कहानियों की रचना की | इन कहानियों को मनुष्य के अतिरिक्त जंगल के जानवरों के पात्रों के माध्यम से रुचिपूर्ण बनाया गया | कहानियों में मनोविज्ञान , राजनीति और व्यवहारनीति की बातें थीं | इन कहानियों को पांच भागों में बनाया गया है इसीलिये कहानियों के इस संग्रह को पंचतन्त्र कहा जाता है |
पंचतन्त्र की कहानियों को सुनकर राजा अमर शक्ति के तीनो पुत्र जल्द ही कुशल राजनीतिय बन गये | जो भी व्यक्ति पंचतन्त्र की कहानियों के बारे में जानता है वो जीवन में सफलता पाता है | इसी कारण लोग अपने बच्चों को पंचतन्त्र की कहानियं सुनाते हैं ताकि वो भो नीतिकुशल और व्यवहार कुशल बन सकें और जीवन में सफतला प्राप्त कर सकें |
पंचतन्त्र के भाग (भेद )-
पंचतन्त्र को पांच तंत्रों अर्थात भागों में बनता गया है ये हैं-
[1] मित्रभेद –
मित्रों में मनमुटाव और अलगाव की कहानियां | इसमें पिंगलक नामक शेर और संजीवक नामक बैल की दोस्ती में दुष्ट सियार द्वारा शत्रुता उत्पन्न करने का वर्णन है |
[2] मित्रसम्प्राप्ति ( मित्रलाभ ) –
योग्य मित्र मिलने पर उसके लाभ | इसमें कौआ ,हिरन , चूहा और कछुआ अपनी मित्रता के कारण एक दूसरे पर आए संकटों से मुक्ति पातें हैं और आपसी मित्रता का सुख भोगते हैं |
[3] काकोलुकीयम् –
कौवे और उल्लुओं की कहानियां | इसमें बतलाया गया है की जो व्यक्ति शत्रू और रोग की उपेक्षा करता है उसका अंत निकट होता है |
[4] लब्धप्रणाश –
हाँथ में आई वस्तु का हाँथ से निकल जाना | इसमें वानर और मगरमच्छ की कहानी है जिसमें वानर अपनी की चतुराई से जान बचा लेता है और मगर के हाँथ आया भोजन निकल जाता है |
[5] अपरीक्षित कारक –
किसी भी कार्य को बिना सोच-विचार के हड़बड़ी में नहीं करना चाहिये , जिसके बारे में परखा न गया हो उसे करने के पहले सावधानी रखना चाहिये | इसमें नेवला ब्राम्हण के पुत्र की रक्षा करता है और ब्राम्हण की पत्नी बिना सोचे विचार किये नेवले को मार कर पछताती है | इन पांचो पागों में ऊपर दी गई कहानियों के अतिरिक्त भी कई कहानियां हैं | इसी प्रकार पंचतन्त्र के प्रत्येक भाग ( अंक ) में कई नीतिपरक और व्यावहारिक कथायें दी गई हैं | पंचतन्त्र की रचना 300 ईसापूर्व (लगभग 2300 वर्ष पूर्व ) मानी गई हैं परन्तु इसिहसकार इसमें एक राय नहीं है उनके अनुसार यह समय आगे-पीछे हो सकता है | अब इसकी मूल प्रति प्राप्त नहीं हैं पंचतन्त्र के कहानियों को अलग अलग स्त्रोतों से एकत्र किया गया है | पंचतन्त्र की कहानियों की मनोविज्ञान , राजनीति और व्यवहारनीति की बातें आज भी व्यावहारिक है और इसी कारण लोग अपने बच्चों को पंचतन्त्र की कहानियां सुनते हैं |
पंचतन्त्र की कुछ प्रमुख कहानियां निम्नानुसार हैं-
[1] शेर और चालाक खरगोश -पंचतंत्र कहानी
[2] कबूतर और शिकारी (एकता की शक्ति )
[3]बन्दर और मूर्ख मगरमच्छ
[4] बोलने वाली गुफा -पंचतंत्र कहानी
[5] मित्रता की शक्ति -पंचतंत्र कहानी
[6] रंगा सियार --पंचतंत्र कहानी
[7] दुष्ट बगुला और केकड़ा -पंचतंत्र कहानी
[8] चतुर ब्राम्हण और राक्षस
[25] दो मुंह वाला पक्षी
[26] ब्राम्हण और केकड़ा
[27] गजराज और मूषकराज
[28] घमण्डी ऊँट की कहानी
[31] घर का भेदी लंका ढाए
[34] सन्यासी का चूहा
[35] लालच का फल
[36] मूर्ख मित्र
[37] राजा और हंस की कहानी
[39] पत्नी के गुलाम
[40] मूर्ख मण्डली
[41] लोभ नाश का कारण है
[42] चुहिया का स्वयंवर
[43] घर का ना घाट का
[44] जूं और खटमल कि कहानी
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